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________________ मृत्यु का दर्शन : समाधिमरण है, पचास वर्ष मरता है। किन्तु जीवन और मरण को अविभक्त कर देखा जाए तो निष्कर्ष होगा-व्यक्ति सौ वर्ष जीता है और सौ वर्ष मरता है। जीवन और मृत्यु का क्षण जीवन और मरण के बीच में पूरी भेदरेखा नहीं है। जीवन का अन्तिम क्षण है मृत्यु और मृत्यु का अन्तिम क्षण है जीवन । जीवन और मरण—दोनों साथ-साथ रहते हैं, इसलिए एक नए दर्शन की जरूरत है। जितनी गहराई से जीवन के दर्शन को समझना अपेक्षित है उतनी ही गहराई से मृत्यु के दर्शन समझना आवश्यक है। जीवन में दर्शन को छोड़कर मृत्यु के दर्शन को नहीं समझा जा सकता और मृत्यु के दर्शन को छोड़कर जीवन के दर्शन को नहीं समझा जा सकता। दोनों को साथ-साथ समझना होगा। भगवान् महावीर ने आवीचि-मरण के प्रतिपादन द्वारा एक नई दृष्टि प्रदान की। आवीचि-मरण का अर्थ है—प्रत्येक समय का जीवन प्रति समय में नष्ट होता है । यह प्रत्येक समय का मरण आवीचि-मरण कहलाता है। बुराई में छिपी है अच्छाई महावीर ने कहा-तुम जीवन को समझो तो मृत्यु को भी समझो और मृत्यु को समझो तो जीवन को भी समझो। दोनों को समझो, एक को पकड़कर मत बैठो। यह एक नई बात है, जो महावीर के दर्शन से प्राप्त होती है। किसी आदमी से कहा जाए-जीते रहो । उसे यह बहुत अच्छा लगेगा। जीवित रहो, यह वाक्य बहुत प्रिय है। किसी व्यक्ति से कहा जाए—मर जाओ ! यह वाक्य उसे कैसा लगेगा? जब कहा जाता है-जिन्दा रहो तब अच्छा लगता है और जब कहा जाता है—मर जाओ तब बुरा लगता है, अप्रिय लगता है। महावीर ने इस भ्रांति को तोड़ा। उन्होंने कहा—जिन्दा रहो, यह वाक्य बहुत अच्छा लगता है पर इसके साथ जो बुराई छिपी है, उसे भी देखो। मर जाओ, यह कथन बुरा लगता है पर इसके साथ जो अच्छाई छिपी है, उसे भी देखो। भगवान् महावीर का दृष्टिकोण समग्र था। वे किसी शब्द को नहीं पकड़ते थे। आजकल शब्दों को बहुत पकड़ा जाता है किन्तु शब्द के पीछे जो समग्रता होती है, उसको छोड़ दिया जाता है। वाणी और अर्थ को कभी अलग नहीं करना चाहिए पर उन्हें अलग कर दिया जाता है। बुराई में भी अच्छाई छिपी हो सकती है और अच्छाई में भी बुराई निहित हो सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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