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________________ धर्म तीर्थ का प्रवर्तन फौज खड़ी थी। उनका संकल्प था-जहां ऋषभ रहेंगे, वहीं हम सब रहेंगे। वे चार हजार व्यक्ति ऋषभ के साथ मुनि बन गए, समता धर्म का प्रवर्तन हो गया। समता धर्म में प्रवर्तन का अर्थ है धर्म तीर्थ का प्रवर्तन । श्रमण परंपरा का मुख्य सूत्र हैसमता। श्रमण परंपरा और वैदिक परंपरा में मुख्य विभाजक रेखा है-समता। स्थानांग सूत्र में तीन प्रकार के व्यवसाय बताए गए हैं, उनमें एक है सामायिक व्यवसाय । इसका संबंध श्रमण परंपरा से है। समता का एक अर्थ समानता किया जाता है पर यह मूल अर्थ नहीं है। समता का अर्थ है आत्मा और आत्मा का अर्थ है समता। जो आत्मा है, वह सामायिक है और जो सामायिक है वह आत्मा है। आत्मा को स्वीकार किए बिना समता की स्थापना संभव नहीं है। यही एक ऐसा बिन्दु है जहां बात की जा सकती है। जो व्यक्ति आत्मा की भूमिका में नहीं है उसे समता की बात करने का अधिकार ही नहीं है। आश्वासन और राजनीति हमारे सामने दो बिन्दु हैं—एक आत्मा और दूसरा पदार्थ । पदार्थ के जगत् में समता की बात करना राजनीति है। राजनीति में आश्वासन देना होता है. उनमें अगर समता का आश्वासन न दिया जाए तो काम चल नहीं सकता। राजनीति में दिया जाने वाला आश्वासन कितना सच्चा होता है, इसका पता नहीं है, किन्तु एक राजनेता का काम ही आश्वासन देना है। चुनाव जीतने के लिए राजनेता ने गांव के लोगों को आश्वासन दिया—यदि मुझे जिताया तो गांव में पानी आ जाएगा। राजनेता चुनाव जीत गया पर पानी एक बूंद भी नहीं आया। जब दूसरा चुनाव निकट आया तब नल जरूर लग गये। वह राजनेता फिर चुनाव में खड़ा हुआ । लोगों ने शिकायत की-आपने पिछले चुनाव में कहा था-गांव में पानी आ जाएगा किन्तु अभी तक पानी नहीं आया। राजनेता ने कहा--वही काम चल रहा है। पहले जिताया तो नल लग गया और अब जिताओगे तो पानी आ जाएगा। राजनीति में ऐसा ही आश्वासन दिया जाता है। कभी-कभी राजनेता बहुत विचित्र आश्वासन भी दे देते हैं। एक राजनेता ने गांव का दौरा किया। चुनाव का अवसर था। गांव वालों ने कहा-हमारे गांव में श्मशान घाट भी अच्छा नहीं है हम आपको क्या वोट दें ? राजनेता बोला—चिंता मत करो। तुम मुझे वोट देकर जिता दो। मैं जीत गया तो हर घर में श्मशान घाट बनवा दूंगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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