SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऋषभ और महावीर पदार्थ बढ़े तब परिग्रह में ममता बढ़ी, संग्रह होने लगा । कौटुम्बिक ममत्व भी बढ़ा । लोकैषणा और धनैषणा के भाव जाग उठे । अपराधी कौन होता है ? इन सारी व्यवस्थाओं के साथ-साथ दण्डनीति का भी विकास हुआ। कुलकरों के समय में हाकार, माकार और धिक्कार—ये दण्डनीति के तीन अंग थे । राजतंत्र के उदय के साथ नई दंडनीति का विकास हुआ। जैसे-जैसे राजतंत्र में प्रगति बढ़ी, विकास बढ़ा, कारोबार बढ़ा, सुरक्षा तंत्र मजबूत हुआ, वैसे-वैसे जनता का मानस बदलता चला गया। प्रजा में लोभ का भाव बढ़ गया। जब लोभ बढ़ता है तब सारी बातें बढ़ जाती हैं। लोभ बढ़ता है तो सारे अपराध बढ़ जाते हैं । लोभ सब अपराधों का मूल है। भावात्मक बीमारियों का कारण भी लोभ बनता है। शरीरशास्त्री कहते हैं— जब प्रतिरोधात्मक रक्षा प्रणाली और जैविक प्रणाली कमजोर होती है तब बीमारी पैदा होती है । प्राकृतिक चिकित्सा का सिद्धांत है- सारी बीमारी पेट से शुरू होती है। आयुर्वेद में लोभ के दो परिणाम बतलाए गए हैं। लोभ से पाचनतंत्र प्रभावित होता है । जितना लोभ बढ़ेगा, उतना पाचन-तंत्र खराब होता चला जाएगा । लोभ का दूसरा परिणाम है- हार्ट की दुर्बलता । इस बात पर भी ध्यान दें - जब अपराध बढ़ेगा, तब पाचन-तंत्र बिगड़ेगा। पाचन-तंत्र बिगड़ने से मस्तिष्क का तंत्र प्रभावित होगा और आदमी अपराधी बन जाएगा। जिस व्यक्ति का पाचन-तंत्र स्वस्थ है, उसका मस्तिष्क स्वस्थ है । वह व्यक्ति अपराधी नहीं होगा। अपराधी होने के लिए पाचन-तंत्र का बिगड़ना मुख्य कारण बनता है । दण्ड के चार प्रकार ३८ समाज विकास के साथ-साथ अपराध पनपने लगे। अपराधों की रोकथाम के लिए दण्डनीति को नया आयाम दिया गया। ऋषभ ने चार प्रकार के दंड का विधान किया— परिभाषित - थोड़े समय के लिए नजरबन्द करना - क्रोधपूर्ण शब्दों में अपराधी को 'यहीं बैठ जाओ' का आदेश देना । • मण्डली बन्द – इस दण्ड में अपराधी से कहा जाता - तुम इस सीमा से बाहर नहीं जा सकते । • नजरबन्द — बन्धन का प्रयोग। इस दण्ड को पाने वाला व्यक्ति अपने घर से बाहर नहीं जा सकता या अमुक स्थान से बाहर नहीं जा सकता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy