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________________ ऋषभ और समाज व्यवस्था समाज विकास का आधार एक दिन ऐसा हुआ—जंगल में अनायास एक प्रकाश दिखाई दिया। लोग उस ओर दौड़ पड़े। उन्होंने सोचा-यह क्या है? उन्होंने कभी प्रकाश देखा नहीं था। उन्होंने प्रकाश में हाथ डाला, हाथ जल गए। उन्हें असह्य पीड़ा हुई । वे दौड़े-दौड़े ऋषभ के पास पहुंचे, बोले–महाराज ! न जाने जंगल में क्या आया है ? हमारे हाथ जल गए हैं । ऋषभ ने अपने अतीन्द्रिय ज्ञान का प्रयोग किया। उन्होंने जाना—अग्नि पैदा हो गई है। मानवीय समाज के विकास का सबसे बड़ा साधन है अग्नि। अगर मानवीय विकास के इतिहास से अग्नि को निकाल दें तो समाज का विकास समाप्त हो जाता है। अगर विद्युत को निकाल दिया जाए तो वैज्ञानिक युग का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए। अग्नि और विद्युत्—ये दो ऐसे तत्व हैं जिनके आधार पर समाज का विकास टिका हुआ है । अग्नि की उत्पत्ति का कारण है-स्निग्ध और रुक्ष-काल का योग । एकान्त स्निग्धकाल और एकांत रुक्षकाल में अग्नि पैदा नहीं होती। ऋषभ ने कहा—अब स्निग्धरुक्ष काल आ गया है इसलिए अग्नि पैदा हो गई है— स्वाम्यप्यूचं स्निग्धरुक्षकालादेषोग्निरुत्थितः । नैकान्तरुक्षे नैकान्तस्निग्धे काले भवत्यसौ ॥ ब्रिटेनिका का अभिमत ब्रिटेनिका का जो विश्व कोश है, उसमें लिखा गया है-'नेगेटिव और पॉजीटिव-दोनों के योग से विद्युत पैदा होती है। इस सिद्धान्त को हजारों वर्ष पहले जैन लोगों ने समझ लिया था।' जब तक काल, स्निग्ध और रुक्ष नहीं था तब तक ऋषभ भी अग्नि पैदा नहीं कर सकते थे। जब तक हमारे वातावरण में पॉजीटिव और नेगेटिव का योग नहीं होता तब तक विद्युत् पैदा नहीं हो सकती। ऋषभ ने कहा- यह जो प्रकाश दिखाई दे रहा है, वह आग है। इससे तुम्हारे खाने की समस्या का समाधान हो जाएगा। अब तुम अनाज को अग्नि में पकाकर खाओ। लोगों ने अनाज को अग्नि में डाला । वह पका नहीं, जल गया। लोग पुनः भगवान् के पास आए। उन्होंने निवेदन किया-महाराज ! समस्या का समाधान नहीं हुआ। वह तो उलझी ही चली जा रही है। सारा अनाज जलकर भस्म हो रहा है। __उस युग के लोग कितने भोले थे ! अज्ञान के साथ बहुत सारी समस्याएं स्वत: आ जाती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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