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________________ कालचक्र और कुलकर जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार पन्द्रह कुलकर हुए। आवश्यक नियुक्ति और स्थानांग सूत्र के अनुसार सात कुलकर हुए। उसमें विमलवाहन को पहला कुलकर माना गया है किन्तु जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार विमलवाहन सातवें कुलकर होते हैं। कुलकरों ने कुल की व्यवस्था संभाल ली और एक प्रकार से नेतृत्व का बीजारोपण हो गया। कुलकर परम्परा : दो अभिमत यौगलिक व्यवस्था सब स्वशासित थे। दूसरे का शासन नहीं था। अपना शासन अपने द्वारा होता था। पूरा लोकतंत्र था। कोई शास्ता नहीं, कोई शासित नहीं । अपने आप अपना जीवन चलाते और अपने आप में रहते । जब कुलकर की व्यवस्था का सूत्रपात हुआ तब एक शासक, एक व्यवस्था और एक नेतृत्व का बीजारोपण हो गया। कुलकरों ने अपने अधिकार का विस्तार किया। जो व्यक्ति गलती करता, पदार्थों को इधर-उधर करता, उसके नियमन के लिए सोचना भी शुरू कर दिया। जब गलतियां होनी शुरू हो गईं, अपराध होने शुरू हो गए तब कुलकरों ने सोचा-कुछ उपाय करना चाहिए। चिंतन आगे चला, एक नया मोड़ आया। नाभि.सातवें कुलकर माने जाते हैं । जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार नाभि चौहदवें कुलकर और ऋषभ पन्द्रहवें कुलकर हुए। ऋषभ को भी कुलकर मान लिया गया। नाभि अन्तिम कुलकर हैं । ऋषभ के दो रूप बन जाते हैं---ऋषभ कुलकर भी बने हैं और ऋषभ राजा भी बने हैं। एक भाषा में सोचें तो नाभि चौदहवें हैं या सातवें हैं। किन्तु अन्तिम कुलकर हैं। उन्होंने कुल की व्यवस्था को ठीक जमा दिया। उनके सामने भी कठिनाइयां आने लगीं । जैसे-जैसे काल का प्रभाव बढ़ता चला गया, काल की स्निग्धता कम होती चली गई, दिमाग का ठंडापन कम होता चला गया, दिमाग और रक्त की उष्मा बढ़ती चली गई वैसे-वैसे अपराध बढ़ते गए। यह बहुत मननीय बात है—जब दिमाग ठंडा रहता है, रक्त ठंडा रहता है तब अपराध जागते नहीं हैं । अपराध तब जागते हैं जब रक्त की गर्मी बढ़ जाती है, दिमाग भी गर्म हो जाता है । नाभि के युग में अपराध में वृद्धि शुरू हो गई। एक प्रश्न प्रस्तुत हुआ—अब क्या किया जाए? इस विषय पर चिंतन-मंथन चला, अपराध की रोकथाम करने की दिशा में एक कदम उठ गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003093
Book TitleRushabh aur Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size5 MB
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