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________________ ६० तमसो मा ज्योतिर्गमय को पहचान लेगा । यदि मन इन्द्रियों की भावुकता भरी मांग का अनुसरण करके प्रवृत्ति करेगा तो वह मायाजाल भरे प्रेय मार्ग में फंसा देगा । अर्थात् - जब मन तुम्हें संसार के फिसलन वाले भोग विलासपूर्ण आपात रमणीय मार्ग की ओर ले जाने लगे अथवा दूसरों का अनुसरण करने को ललचाए, तभी व्यक्ति को संभल कर अपनी विवेक बुद्धि का उपयोग करके श्रेय मार्ग को पकड़ना चाहिए, भले ही उसमें प्रारम्भ में कष्ट, कठिनाइयाँ या विघ्न बाधाएँ आएँ, परन्तु उसका परिणाम सुख शान्ति-दायक होगा । जब श्रेय मार्ग का निर्णय हो जाए तो उसे क्रियान्वित करने हेतु जुट पड़ना चाहिए | सच्चा मार्ग - आत्माभिमुखी पथ - पकड़ा कि उस व्यक्ति पर परमात्मा की कृपा अनायास ही उतरने लगेगी, जो उसके जीवन को अधिकाधिक उदात्त बनाएगी, और इसी से उसे मानसिक शान्ति प्राप्त होगी । विचार, वाणी और व्यवहार में एकरूपता लाओ अतः मानसिक शान्ति का मूल सूत्र है - अपनी आत्मा के प्रति वफा दार रहो । जो लक्ष्य निश्चित किया है, अथवा गृहस्थ धर्म या साधु धर्म दोनों श्रेयस्कर मार्गों में से जिस मार्ग पर चलने का निश्चय किया है, उसके प्रति पूर्ण अनन्य श्रद्धापूर्वक चल पड़ो । विचार, वाणी और व्यवहार में अधिकाधिक मात्रा में एकसूत्रता लाओ। जैसा विचार हो, तद्नुसार बोलो और व्यवहार करो । छल, झूठ फरेब या दम्भ को जीवन में से निकाल फैंको । तभी सच्चे माने में मानसिक शान्ति प्राप्त होगी । भौतिक सतह पर तुम से कम भाग्यशाली हो, उसके साथ अपनी तुलना करो और आध्यात्मिक सतह पर तुम से अधिक भाग्यशाली हो, उसके साथ अपनी तुलना करो । यह उपाय तुम्हारे अन्तर् में भौतिक सन्तोष और आध्यात्मिक असन्तोष जागृत करेगा । इस उपाय से तुम आध्यात्मिक प्रगति और मानसिक शान्ति प्राप्त कर सकोगे । आध्यात्मिक समृद्धि ही वास्तविक समृद्धि है । यह आत्मा की पूँजी होगी । उपर्युक्त उपाय के बदले उलटा उपाय अजमाओगे, अर्थात् भौतिक समृद्धि में तुम से बढ़े- चढ़े लोगों की ओर तथा आध्यात्मिक समृद्धि में तुम से निम्न कोटि के लोगों की ओर मुख रखोगे तो तुममें भौतिक असन्तोष एवं आध्यात्मिक अहंकार का अनिष्ट प्रभाव पैदा होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003091
Book TitleTamso ma Jyotirgamayo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1991
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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