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________________ सुख में फूलो नहीं, दुख में रोओ नहीं २ रोने से दुःख दूविधाएं विदा नहीं हो जाती, प्रत्युत् नये-नये नेपथ्य में द्वार खड़खड़ाने लगती है। २ दुःख और सुख तुम्हारे मार्ग में आ सकते हैं, कष्ट के बादल तुम्हारे अन्तर-मंदिर को आच्छादित कर सकते हैं लेकिन किसी के हाथों तुम अपनी आत्मशक्ति का सौदा न करो। केवल वही जो सुख और दुःख को उड़ते हुए बादल समझता है और अपने लक्ष्य के प्रति पूर्ण सजग रहता है, वास्तव में सुखी बन पाता है। ३ जो बुरी खबर में घबराता नहीं, वह अच्छी खबर से फूलेगा नहीं। ४ प्रभ का भक्त न सुख में छलकता है, न दुःख में कुम्हलाता है। ५ दुःख और सुख अपना किया हआ होता है। अबोधि-अज्ञान से दुःख अजित होता है और बोधि-ज्ञान से उसका नाश होता ६ अपने अधिकांश दु:ख को तुमने स्वयं चना है। ७ वह व्यक्ति बहुत दुःखी होता है जो मन की मांग के साथ चलता है। ८ जिसके मन में मैत्री का विकास हुआ है, वह कभी विषण्ण नहीं होता, दुःखीं नहीं होता, निरंतर प्रसन्न रहता है । ६ एक साथ एक से अधिक दुःख मत भोगो। १० मन में कभी सफलता में हर्ष और विफलता में विषाद न हो। ११ जिसका भी सुख संसार-आश्रित है, उसका सुख क्षणभर से ज्यादा नहीं हो सकता। १२ सुख-दुःख आने जाने वाली परिस्थितियां हैं। १३ दु:ख को भूलने से दुःख मर जाता है । योगक्षेम-सूत्र ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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