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________________ अपनी कठोर प्रकृति का दण्ड स्वास्थ्य के क्षरण के रूप में भोगते हैं । ७ हठात् रुलाई रोकने से जुकाम, सिरदर्द ही नहीं चक्कर आना, अनिद्रा, आंखें जलना, स्मरण शक्ति की कमी आदि रोग हो जाते हैं। ८ मूत्र और पसीने की तरह आंसू भी शरीर की उत्सर्जक प्रक्रिया का उत्पादक है । ६ प्रसन्नता या आनन्द की अनुभूतियों को हंसी या मुस्कान के साथ अभिव्यक्त कर देने पर मन हल्का हो जाता है । यही बात रोने, उदास होने के संबंध में है । १० रोने की आदत बना लेना दुर्बलता की निशानी है । ११ अपने लिए किसी को आंखों में आंसू भर आए देखने में एक अपूर्व आनंद होता है । केवल आनंद ही नहीं, धीरज बंधाने की बड़ी शक्ति भी हुआ करती है उन आंसुओं में । १२ घनीभूत पीड़ा की अभिव्यक्ति का नाम ही आंसू है । मनुष्य के अंतःकरण में स्थित पीड़ा का पर्वत जब पिघलता है, उसका तेज प्रवाह थामे भी नहीं थमता । १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only योगक्षेम-सूत्र www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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