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________________ आत्मरक्षा एक अहिंसक की १७ रहेगी। परिग्रह का दूसरा नाम है-हिंसा । परिग्रह समाप्त होगा तो हिंसा भी छूट जाएगी। कितना साफ चिन्तन है । पर भूमिका-भेद न समझने से समस्या उलझ गई । इस विषय पर लोकमान्य तिलक का चिन्तन सही था। एकांत में चला जाए तीसरा चिन्तन है-एक व्यक्ति दूसरे को मार रहा है । उस स्थिति में क्या करे ? कहा गया-वहां से उठकर एकांत में चला जाए । यह सोचेमैंने इसे समझाया, यह माना नहीं । मैं अब इस हिंसा को नहीं देख सकता । मेरी आत्मा कांप उठी है । इस स्थिति में वह वहां से उठकर दूसरे स्थान पर चला जाए। यह है तीसरा मार्ग । अहिंसा के ये तीन मार्ग बतलाए गए। एक अहिंसक की मर्यादा क्या हो ? वह हिंसा की समस्या में क्या करे ? वह अपनी बलि दे, अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दे, यह अहिंसक की मर्यादा है पर दूसरे के प्राणों का उत्सर्ग करे, यह अहिंसक की मर्यादा नहीं है। कितना कठोर धर्म है अहिंसक का । इस पर चलना सामान्य आदमी के वश की बात नहीं है। मार्मिक प्रसंग __ मेतायं मुनि के जीवन का मार्मिक प्रसंग है। एक बार मेतार्य मुनि राजगृही में मासखमण के पारणे के लिए भिक्षार्थ घूम रहे थे। वे अनायास सुनार के घर भिक्षा के लिए पहुंच गए । सुनार उस समय सोने के यव बना रहा था। मुनि को देखते ही सुनार ने करबद्ध वंदन किया। वह भिक्षा लाने के लिए अन्दर गया। उसी समय एक क्रौञ्च पक्षी आया । वह सोने के यवों को असली यव समझ कर निगल गया। सुनार भिक्षा लेकर आया । उसने देखा-यव नहीं हैं। वह चिन्तित हो उठा। उसने मुनि से यव के बारे में पूछा। मुनि ने सोचा-यदि मैं सच बोलता हूं तो सुनार क्रौञ्च पक्षी को मार देगा। मैं प्राणिवध का निमिन बनूंगा। यदि मैं झूठ बोलूंगा तो सत्य का व्रत टूट जाएगा। दोनों ओर समस्या है। इस समस्या से बचने के लिए क्या करूं ? मुनि मौन हो गए। सुनार ने अनेक बार मेतार्य मुनि से यवों के बारे में पूछा । मुनि को मौन देखकर वह क्रुद्ध हो उठा। उसने सोचा-इस कपटी मुनि ने ही स्वर्ण यव लिए हैं। क्रोध में बेभान होकर सुनार ने मुनि को पकड़ा । मुनि के मस्तक पर चमड़ा गीला कर बांध दिया । मुनि को घर के प्रागंण में खड़ा कर दिया। ज्यों-ज्यों चमड़े का कसाव बढ़ा, मुनि को अपार वेदना होने लगी। मुनि ने उस भयंकर वेदना को समभाव से सहा । उसी समय एक लकड़हारा सुनार के घर आया । उसने लकड़ियों का गट्टर नीचे गिराया । उस गट्ठर के गिरने की तीव्र आवाज से क्रौञ्च पक्षी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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