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________________ अस्तित्व और अहिंसा हैं, फसलें उगाई हैं । एक जनरल स्टोर में इतने आइटम रहते हैं कि जिन्हें देखने के लिए कोई व्यक्ति चला जाए तो पूरा दिन देखने में ही बीत जाए । बाजार लोगों की भीड़ से भरे रहते हैं। साड़ियों की दुकान पर महिलाओं की भीड़ लगी रहती है । जनरल स्टोर पर रोजमर्रा के काम आने वाले पदार्थों को खरीदने के लिए लोग आतुर दिखाई देते हैं। इतने प्रकार की खाने और पहनने की चीजों का विकास हुआ है, जिनकी गिनती करना भी सहज संभव नहीं होता। गति का परिणाम प्रश्न है-क्या इतने पदार्थों की जरूरत है ? आदमी ने कृत्रिम आवश्यकता का बहुत विस्तार कर लिया है। गति का यह एक परिणाम है। इस गतिशीलता ने विकास और निर्माण की गति को आगे बढ़ाया है। साथसाथ इसने मनुष्य में लोभ और सौन्दर्य की भावना को भी आगे बढ़ाया है। इसका परिणाम है—आज आदमी स्वयं में सुन्दर नहीं रहा । वह कपड़े सुन्दर पहनना चाहता है पर स्वयं सुन्दर नहीं है। वह अपने आपमें सजा हुआ नहीं है पर अपने आपको सजाना चाहता है । अनेक व्यक्ति सेंट लगाते हैं किन्तु क्या वे यह नहीं जानते कि यह कैसे बनता है ? यदि व्यक्ति सेंट बनाने की प्रक्रिया को जान ले तो शायद उसे लगाना बंद करदे । एक जानवर होता है बिज्जु । उसकी यौनग्रंथि से जो स्राव होता है, उसमें बहुत सुगन्ध होती है। उस बिज्जु की यौन-ग्रन्थि को पीट-पीटकर स्राव कराया जाता है और उसी सवित पदार्थ से बहुत सारे सेंट बनते हैं। एक छोटासा प्राणी है बीवर । उसका चमडा बहुत मुलायम होता है । रोएंदार कोट बनाने के लिए उस बीवर को मारा जाता है। क्रूरता की पृष्ठभूमि शक्तिशाली आदमी कमजोर को मारता है, यह एक सिद्धान्त-सा बन रहा है। मनुष्य को सोचने की शक्ति मिली है किन्तु वह प्राणियों के साथ जो अन्याय कर रहा है क्या वह संगत है ? मनुष्य के शौक ने कितनी क्रूरता को जन्म दिया है, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। थोड़े से आराम, बड़प्पन और सौन्दर्य के लिए कितना अन्याय किया जा रहा है। लोग कहते हैं----आतंकवाद बढ़ रहा है। आदमी को तिनके की तरह मारा जा रहा है। यदि आदमी के चरित्र को देखें तो और क्या परिणाम आ सकता है ? यह एक चक्र है । यदि हजार आदमी क्रूरता करेंगे तो लाखों आदमी क्रूर बन जाएंगे। क्रूरता के पीछे क्या है ? इस पर हम ध्यान केन्द्रित करें। उसकी पृष्ठभूमि में है-रुपया, आराम, सुन्दर दीखने की प्रवृत्ति और बड़प्पन की भावना । समाचार पत्र में पढ़ा-कस्तूरी मृग समाप्त होते चले जा रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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