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________________ हिंसा मृत्यु है हिंसा और असंयम संयम को छोड़कर अहिंसा को नहीं समझा जा सकता, असंयम को छोड़कर हिंसा को नहीं समझा जा सकता। हिंसा और अहिंसा-ये निष्पत्तियां हैं, परिणाम हैं। इनकी पृष्ठभूमि में है मनुष्य का संयम और असंयम । एक भाषा में कहा जा सकता है—संयम का अर्थ है अहिंसा और असंयम का अर्थ है-हिंसा। जितना-जितना संयम उतनी-उतनी अहिंसा, जितना-जितना असंयम उतनी-उतनी हिंसा । आज हिंसा बढ़ी है और इसलिए बढ़ी है कि असंयम बढ़ा है। हम हिंसा को पकड़ें तो वह हाथ में नहीं आएगी। हिंसा कभी भी पकड़ी नहीं जा सकती। ___आज हिंसा को रोकने के बहुत उपाय किए जा रहे हैं। दंड-संहिता बढ़ गई है, पुलिस की संख्या बढ़ गई है। सतर्कता विभाग बन गए हैं। पुलिस की शाखाएं बढ़ती जा रही हैं। पहले एक डी० आई० जी० था । आज अनेक डी. आई. जी और आई. जी.बना दिए गए । अनेक नगरों में पुलिस का जाल सा बिछा हुआ रहता है, फिर भी अपराध उससे अधिक बढ़ते चले जा रहे हैं, आतंक बढ़ता चला जा रहा है, उपाय बेअसर हो रहे हैं । इसका कारण है--जिस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए, उस बात पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है । ध्यान देने योग्य बात है—असंयम । समस्या का कारण आज मनुष्य में असंयम बढ़ रहा है। मैं एक युवक से बातचीत कर रहा था। उसने कहा- ईगो (Ego) तो होना ही चाहिए। ईगो नहीं होगा तो विकास कैसे होगा। महत्वाकांक्षा के बिना विकास कैसे हो सकता है ? इसलिए ईगो का होना जरूरी है। मैंने कहा-ईगो का होना जरूरी है तो साथ-साथ सुपर ईगो (super Ego) का होना भी जरूरी है। यदि सुपर ईगो नहीं होगा तो कोरा ईगो खतरनाक बन जाएगा। ईगो और सुपर ईगो का सन्तुलन जरूरी है। अगर ईगो को हम असंयम मानें तो सुपर ईगो को संयम माना जा सकता है। ईगो असंयम है तो सुपर ईगो संयम है। अगर ईगो है, सुपर ईगो नहीं है तो हिंसा का होना अनिवार्य है। आज असंयम के कारण समस्याएं बढ़ रही हैं। इसी असंयम को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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