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________________ प्रवचन २० | संकलिका • से बेमि-जे अईया, जे य पडुप्पन्ना जे य आगमिस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परुति-सव्वे पाणा सव्वे भूता सम्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा, ण परिघेतव्वा ण परितावेयव्वा, ण उद्दवेयव्वा । • एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खेयणेहिं पवेयए। .० तच्चं चेयं तहा चेयं अस्सि चेयं पवुच्चई (आयारो ४।१-२, ४) ० प्रश्न शाश्वत और अशाश्वत का • अनुत्तरित प्रश्न ० अहिंसा धर्म शाश्वत है ० जहां बुद्धि है, वहां भेद अनिवार्य है ० जहां अनुभव है, वहां भेद नहा है ० परोक्ष है इन्द्रिय-ज्ञान ० प्रत्यक्ष है अतीन्द्रिय-ज्ञान ० आत्म-साक्षात्कार से निकला स्वर ० मूल्य नए और पुराने का ० शाश्वत धर्म है आत्म-साक्षात्कार ० धर्म की सरल परिभाषा ० धर्म है त्याग ० शाश्वत है पारिणामिक भाव .० शाश्वत है अस्तित्व • अस्तित्व की अनुभूति : व्यावहारिक तथ्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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