SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दुःख का चक्र १०७ है । क्या वह सोचता है-दुःख पैदा हो गया ? इसका इलाज करवान' है ? क्या आस-पास के परिजन सोचते हैं---इसे डॉक्टर को दिखाएं, क्रोध को मिटाने का उपाय करें ? हम यह मानते ही नहीं हैं कि क्रोध आना कोई दुःख है ? अहंकार और लोभ का होना कोई दुःख है ? क्रोध दिखाई देता है, अहंकार और लोभ छिपे रहते हैं। एक पुत्र संतोषी है। वह पिता से कहता हैपिताजी ! मैं दहेज नहीं लूंगा। पिता का उत्तर होगा--तू जानता क्या है ? पंचायती मत कर । पुत्र कहता है—पिताजी ! हम बेईमानी नहीं करेंगे । पिता उसे डांट पिला देता है---तुम्हें कमाने का अनुभव ही नहीं है । शरीर-केन्द्रित है दुःख की परिभाषा . ___ दुःख की परिभाषा शरीर के आसपास केन्द्रित है। क्रोध, अहंकार और लोभ दु:ख नहीं हैं, इस मान्यता के कारण दुःख की परिभाषा शरीर के साथ जुड़ गई, दुःख-चक्र का मूल स्वरूप उपेक्षित हो गया। आज राजतंत्र और चुनाव-तंत्र भी शारीरिक दुःख को मिटाने के प्रयत्न कर रहे हैं। राजनीति में जो नारे दिए जाते हैं, आश्वासन दिए जाते हैं, वे शरीर से जुड़ी हुई समस्याओं के समाधान के लिए होते हैं । हम लौकिक समस्याओं में ही उलझे हुए हैं । हमने इस तथ्य को भुला दिया--जब तक दुःख के मूल कारण को नहीं मिटाया जाएगा तब तक लौकिक दुःख भी नहीं मिट पाएगा। जनता की शिकायत है—रिश्वतखोरी बहुत चल रही है, न्याय नहीं मिल रहा है । प्रश्न है--रिश्वत क्यों चल रही है ? क्या वह रोटी के लिए चल रही है ? वह रोटी के लिए नहीं, लोभ के लिए चल रही है। अहंकार की बीमारी है तो अन्याय क्यों नहीं होगा ? राग-द्वेष आदि प्रबल हैं तो अपराध क्यों नहीं होंगे ? समस्या का मूल महावीर ने इस बात पर बल दिया--दुःख के मूल चक्र को पकड़ो। यदि क्रोध, मान, माया, लोभ आदि का इलाज किया जाता है तो क्या अन्याय, अपराध, अतिक्रमण, बलात्कार और लूट-खसोट समाप्त नहीं हो जाएंगे ? इन सबकी समाप्ति होने पर भी क्या जेलें भरी रहेंगी ? क्या बलप्रयोग और पुलिस की आवश्यकता रहेगी ? आज ये सारी समस्याएं इसीलिए प्रबल बनी हुई हैं कि दुःख के मूल को मिटाने की दिशा में कोई प्रयत्न नहीं हो रहा है । यदि इस दुःख-चक्र को समझ लिया जाए तो अनेक समस्याएं स्वतः हल हो जाए । रोटी, पानी की समस्या भी इस दुःखचक्र के कारण जटिल बनी हुई है । यदि लोभ की प्रबलता का इलाज किया जाता, लोभ-शमन की दवाओं का आविष्कार और प्रयोग होता तो रोटी-पानी की समस्या नहीं रहती । संसार में इतने पशु-पक्षी हैं । क्या कोई भूख से मरता है ? भूख से मरने वालों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy