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________________ ३० अस्तित्व और अहिंसा सामान्यत: पूर्वरात्रि में सेराटोनिन के बनने का समय होता है और चार बजे लगभग मेलाटोनिन के बनने का समय होता है । उस समय आदमी जागने की स्थिति में आता है। ये दो रसायन हमारे शरीर की नींद के लिए उत्तरदायी माने जाते हैं। वैसे ही हमारी आंतरिक चेतना के जागरण के लिए भी कुछ रसायन हैं। एक मोहनीय कर्म को पैदा करता है, एक उसे उत्तेजित करता है, एक उसे उपशांत करता है । उत्तेजित करने वाले रसायन जब-जब प्रबल बनते हैं, आदमी भाव-नींद में चला जाता है। अध्यात्म की भाषा में आंखों को बन्द कर देने वाली नींद को द्रव्यनींद कहा गया और चेतना को सुलाने वाली नींद को भाव-नींद कहा गया । आंख खुली होती है किन्तु मूर्छा का ऐसा घेरा आता है कि व्यक्ति को अपना भान नहीं रहता, कर्त्तव्य और अकर्तव्य का बोध नहीं रहता, सभी बोध समाप्त हो जाते हैं । अध्यात्म में इस भाव निद्रा पर बहुत विचार किया गया, चेतना को जगाए रखने पर बल दिया गया । नींद न आने का आध्यात्मिक हेतु किसी के शरीर में दर्द होता है तो उसे नींद नहीं आती है । दर्द और पीड़ा अनिद्रा की स्थिति उत्पन्न करते हैं। मानसिक तनाव की भी यही परिणति है । तनाव में व्यक्ति को नींद नहीं आती । मानसिक चिन्ता है तो भी नींद नहीं आती। यह जागरण है पर अनिद्रा की बीमारी का परिणाम है । प्रश्न होता है क्या अध्यात्म में भी ऐसी कोई पीड़ा है, जो चौबीस घण्टे आदमी को जागृत रख सके ? जब मन में यह बेचैनी, यह पीड़ा प्रबल बनती है—यह संसार कैसा है ? यहां दुःख ही दुःख है। जन्म का दुःख है, मौत का दुःख है, रोग और बुढ़ापे का दुःख है। इस दुःखमय संसार में जीव क्लेश पाता जम्मं दुक्खं जरा दुक्खं, रोगाय मरणाणि य । अहो दुक्खो हु संसारो जत्थ कीसंति जन्तवो ॥ जब यह दुःख की अनुभूति होने लगती है, व्यक्ति की नींद उड़ जाती है। जब तक इस दुःख का अनुभव नहीं होता, तब तक चौबीस घंटा जागने वाली स्थिति बनती नहीं है । इसीलिए अनेक भारतीय दर्शनों ने दुःखवाद को महत्त्व दिया। दुःखवाद दर्शन के क्षेत्र में सुखवादी और दुःखवादी-दोनों धाराएं रही । जैन, बौद्ध और सांख्य—ये दुःखवादी दर्शन हैं । सांख्य दर्शन का सूत्र है-जब व्यक्ति आधिदैविक, आधिभौतिक, और आध्यात्मिक-इन तीन तापों से तप्त होता है तब उसमें सम्यग् दर्शन जागता है। जागने की स्थिति बेचैनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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