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________________ ८९ जैन साहित्य दिगम्बर-आचार्यों का प्रमुख विहार-क्षेत्र दक्षिण बन गया। दक्षिण की भाषाओं में उन्होंने विपुल साहित्य रचा।। कन्नड़ भाषा में कवि 'पोन्न' का शान्तिपुराण, 'पंप' का आदिपुराण और भारत आज भी बेजोड़ माना जाता है। 'रत्न' का गदा-युद्ध भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। ईसा की दसवीं शती से सोलहवी शती तक जैन महर्षियों ने काव्य, व्याकरण, शब्दकोश, ज्योतिष, वैद्यक आदि विविध विषयों पर अनेक ग्रंथ लिखे और कर्णाटक संस्कृति को पर्याप्त समृद्ध बनाया। दक्षिण भारत की पांच द्राविड़-भाषाओं में से कन्नड़ एक प्रमुख भाषा है। उसमें जैनसाहित्य और साहित्यकार आज भी अमर हैं। तमिल भी दक्षिण की प्रसिद्ध भाषा है। इसका जैन-साहित्य भी बहत समृद्ध है। इसके पांच महाकाव्यों में से तीन महाकाव्य चिन्तामणि, सिलप्पडिकारम् और वलैतापति- जैन कवियों द्वारा रचित हैं । 'नन्नोल' तमिल का विश्रु त व्याकरण है। कुरल और नालदियार जैसे महान् ग्रन्थ भी जैन महर्षियों की कृतियां हैं। गुजराती साहित्य उत्तर भारत श्वेताम्बर-आचार्यों का विहार-क्षेत्र रहा। उत्तर भारत की भाषाओं में दिगम्बर-साहित्य प्रचुर है, पर श्वेताम्बर-साहित्य की अपेक्षा वह कम है। आचार्य हेमचन्द्र के समय से गुजरात जैन-साहित्य और संस्कृति से प्रभावित रहा है। आनन्दघनजी, यशोविजयजी आदि अनेक योगियों और महर्षियों ने इस भाषा में अनेक रचनाएं प्रस्तुत की। राजस्थानी साहित्य राजस्थानी में जैन-साहित्य विशाल है। इस सहस्राब्दी में राजस्थान जैन मुनियों का प्रमुख विहार-स्थल रहा है। यति, संविग्न, स्थानकवासी और तेरापंथी-सभी ने राजस्थानी में लिखा है। रास और चरितों की संख्या प्रचुर है। पूज्य जयमलजी का प्रदेशी राजा का चरित्र बहुत ही रोचक है। कवि समयसुन्दरजी की रचनाओं का संग्रह अगरचंदजी नाहटा ने अभी प्रकाशित किया है। फुटकर ढालों का संकलन किया जाए तो इतिहास को नई दिशाएं मिल सकती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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