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________________ भगवान् ऋषभ से पार्श्व तक शाश्वत प्रश्न और जैन दर्शन हम जिस जगत् में जी रहे हैं वह क्या है ? वह कहां है ? वह कब से है ? वह एक-रूपी है या बहुरूपी ? वह किसकी रचना है ? ये प्रश्न अनादिकाल से मनुष्य के मन को आलोडित करते रहे हैं। मनुष्य इन्हीं प्रश्नों का उत्तर पाने के लिए दर्शन की वेदी तक पहुंचा है। दर्शन देखने की पद्धति है। हम वस्तु को दो साधनों से देखते हैं । पहला साधन हैं-प्रत्यक्षीकरण या साक्षात्कार और दूसरा साधन है-हेतुवाद । ___ ध्यान-सिद्ध मनुष्य विश्व को अन्तर्दृष्टि से देखता है । बौद्धिक मनुष्य उसे तार्किक दृष्टि से देखता है। अन्तर्दृष्टि वैयक्तिक साधन से फलित ज्ञान है । इसलिए उसके अध्ययन की कोई प्रक्रिया नहीं है। तर्क मनुष्य के ऐन्द्रियिक अनुभवों [साहचर्य नियमों] से फलित ज्ञान है । वह सामूहिक बोध है, इसलिए अध्ययन की प्रक्रिया है। अन्तर्दृष्टि से दृष्ट तत्त्वों का प्रतिपादक शास्त्र दर्शन-शास्त्र कहलाता है। तार्किक ज्ञान से उपलब्ध तत्त्वों तथा तार्किक प्रक्रिया का प्रतिपादक शास्त्र तर्कशास्त्र कहलाता है। आज दोनों प्रकार के शास्त्र बहुत एकात्मक हो गए हैं । अतः दर्शनशास्त्र शब्द से उन दोनों का बोध होता है। भगवान् महावीर अन्तर्द्रष्टा थे। उनके उत्तरवर्ती आचार्य तार्किक प्रतिभा के धनी थे । आज का जैन दर्शन उन दोनों के निरूपण का प्रतिफलन है। जैन दर्शन ने उन शाश्वत प्रश्नों का उत्तर दिया है: १. यह जगत् चेतन और अचेतन द्रव्यों का समवाय है। २. यह अनन्त आकाश का मध्यवर्ती आकाश खंड है। समग्र आकाश की तुलना में यह एक बिन्दु जैसा है। ३. यह शाश्वत है। इसका आदि-बिन्दु नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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