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________________ जैन संस्कृति १०३ उत्तर-प्रदेश भगवान् पार्श्व वाराणसी के थे। काशी और कौशल-ये दोनों राज्य उनके धर्मोपदेश से बहुत प्रभावित थे । वाराणसी का अलक्ष्य राजा भी भगवान महावीर के पास प्रवजित हुआ था। उत्तराध्ययन में प्रवजित होने वाले राजाओं की सूची में काशीराज के प्रवजित होने का उल्लेख है। राजस्थान भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् मरुस्थल [वर्तमान राजस्थान] में जैन-धर्म का प्रभाव बढ़ गया था। आचार्य रत्नप्रभसूरि वीर-निर्वाण की पहली शताब्दी में उपकेश या ओसियां में आए थे। उन्होंने वहां ओसियां के सवालाख नागरिकों को जैन-धर्म में दीक्षित किया और उन्हें एक जैन-जाति [ओसवाल] के रूप में परिवर्तित कर दिया। यह घटना वीरनिर्वाण के ७० वर्ष बाद के आसपास की है । पंजाब और सिन्धु-सौवीर भगवान् महावीर ने साधुओं के विहार के लिए चारों दिशाओं की सीमा निर्धारित की, उसमें पश्चिमी सीमा 'स्थूणा' [कुरुक्षेत्र ] है। इससे जान पड़ता है कि पंजाब का स्थूणा तक का भाग जैन-धर्म से प्रभावित था। साढ़े पच्चीस आर्य-देशों की सूची में भी कुरु का नाम है। सिंधु-सौवीर दीर्घकाल से श्रमण-संस्कृति से प्रभावित था। भगवान् महावीर महाराज उद्रायण को दीक्षित करने वहां पधारे ही थे। मध्य-प्रदेश बुन्देलखण्ड में ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के लगभग जैन-धर्म बहुत प्रभावशाली था। आज भी वहां उसके अनेक चिह्न मिलते हैं। राष्ट्रकट-नरेश जैन-धर्म के अनुयायी थे। उनका कलचरिनरेशों से गहरा संबंध था। कलचुरि की राजधानी त्रिपुरा और रत्नपुर में आज भी अनेक प्राचीन जैन-मूर्तियां और खण्डहर प्राप्त चन्देल राज्य के प्रधान खुजराहो नगर में लेख तथा प्रतिमाओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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