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________________ १०२ जैन परम्परा का इतिहास से बाहर भी पहुंचाया। उस समय जैन-मुनियों का विहार-क्षेत्र भी विस्तृत हआ। श्री विश्वम्भरनाथ पांडे ने अहिंसक-परम्परा की चर्चा करते हुए लिखा है--"ईस्वी सन् की पहली शताब्दी में और उसके बाद के हजार वर्षों तक जैन-धर्म मध्यपूर्व के देशों में किसी न किसी रूप में यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म को प्रभावित करता रहा है।" प्रसिद्ध जर्मन इतिहास-लेखक बान क्रेमर के अनुसार मध्यपूर्व में प्रचलित 'समानिया' संप्रदाय 'श्रमण' शब्द का अपभ्रंश है। इतिहास लेखक जी० एफ० मूर लिखता है कि 'हजरत ईसा के जन्म की शताब्दी से पूर्व ईराक, स्याम और फिलस्तीन में जैन-मुनि और बौद्ध भिक्षु सैकड़ों की संख्या में फैले हुए थे।' 'सियाहत नाम ए नासिर' का लेखक लिखता है कि ईस्लाम धर्म के कलन्दरी तबके पर जैन-धर्म का काफी प्रभाव पड़ा था । कलन्दर चार नियमों का पालन करते थे---साधता, शद्धता, सत्यता और दरिद्रता । वे अहिंसा पर अखण्ड विश्वास रखते थे। जैन-धर्म का प्रसार अहिंसा, शांति मैत्री और संयम का प्रसार था। इसलिए उस युग को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है । पुरातत्त्व-विद् पी०सी० राय चौधरी के अनुसार"यह धर्म धीरे-धीरे फैला, जिस प्रकार ईसाई-धर्म का प्रचार यूरोप में धीरे-धीरे हुआ। श्रेणिक, कुणिक, चंद्रगुप्त, संप्रति खारवेल तथा अन्य राजाओं ने जैन-धर्म को अपनाया। वे शताब्द भारत के हिन्दूशासन के वैभवपूर्ण युग थे, जिन युगों में जैन-धर्म-सा महान् धर्म प्रचारित हुआ।" ___ कभी-कभी एक विचार प्रस्फुटित होता है-जैन-धर्म के अहिंसा सिद्धांत ने भारत को कायर बना दिया, पर यह सत्य से बहुत दूर है । अहिंसक कभी कायर नहीं होता। यह कायरता और उसके परिणामस्वरूप परतन्त्रता हिंसा के उत्कर्ष से, आपसी वैमनस्य से आयी और तब आयी जब जैन-धर्म के प्रभाव से भारतीय मानस दूर हो रहा था। भगवान महावीर ने समाज के जो नैतिक मूल्य स्थिर किए उनमें दो बातें सामाजिक राजनैतिक दृष्टि से भी अधिक महत्त्वपूर्ण थीं। १. अनाक्रमण-संकल्पी हिंसा का त्याग । २. इच्छा परिमाण-परिग्रह का सीमाकरण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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