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________________ ८२ चांदनी भीतर की द्वारा प्रत्यक्ष हो सकता है। श्रुतज्ञान प्रत्यक्ष करा देता है। नई-नई बातें श्रुत के द्वारा प्राप्त होती हैं। जब श्रुत नहीं होता है तो अज्ञान होता है। आदमी नई बात से भी भड़क जाता है। __स्वाध्याय का, ज्ञानार्जन का बहुत बड़ा मूल्य है। अगर वर्तमान की पीढ़ी ज्ञानवान् नहीं होती है, दूरदर्शी नहीं होती है तो उसका परिणाम भावी पीढ़ियों को भुगतना पड़ता है। यह एक बहुत बड़ा शाश्वत सत्य है। वर्तमान की पीढ़ी पर दो दायित्व होते हैं-अतीत का दायित्व यानी अपने पुरखों के प्रति दायित्व और भावी पीढ़ी के प्रति दायित्व यानी अपने बच्चों के भविष्य निर्माण का दायित्व । जो वर्तमान की पीढ़ी अपनी बात सोचती है, अपने तक सोचती है, वह बहुत खतरनाक पीढ़ी होती है। अपने द्वारा किया हुआ कार्य भावी पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालेगा ? यह सोचना दूरदर्शिता है। यदि यह दूरदर्शिता नहीं होती है तो भावी पीढ़ी वर्तमान पीढ़ी को सदा कोसती रहती है। जीवन का लक्ष्य रोटी, कपड़ा और मकान जीवन का लक्ष्य नहीं है। जीवन का लक्ष्य होना चाहिए--निरन्तर नए तथ्य की प्राप्ति और वह स्वाध्याय से संभव है। जो गृहस्थ एक दिन में कोई नई बात नहीं पढ़ता और नई जानकारी नहीं लेता, तो क्या वह केवल खाने-पीने के लिए ही जीवन धारण करता है ? यदि वह केवल इनके लिए ही जी रहा है तो मनुष्य जीवन की व्यर्थता इससे बड़ी क्या होगी? मनुष्य जीवन की सार्थकता ज्ञानार्जन से है। मनुष्य को ज्ञान की शक्ति मिली है। जानने की शक्ति मिली है। अगर उसका वह कोई उपयोग नहीं करता है तो उससे बड़ी जीवन की कोई निरर्थकता नहीं हो सकती। __ एक अच्छे मुनि का लक्षण है--स्वाध्यायशील होना। पर स्वाध्याय में बड़ी बाधा है-आलस्य और नींद । महावीर ने कहा-जो साधु बन गया और केवल आहार, पानी और नींद में अपना जीवन बिताता है, वह पापश्रमण है। चिन्तनीय प्रश्न चिन्तन का प्रश्न है-यदि साधु का सारा समय प्रमाद में बीतता है, केवल आहार, पानी, गोचरी आदि में बीतता है, न उसके स्वाध्याय होता है, न ध्यान होता है, न कोई विकास के लिए चिन्तन होता है और न अध्यात्म की यात्रा आगे बढ़ती है तो इस स्थिति में क्या साधुता नहीं सिसकती है ? साधुता सोचती है--मुझे कहां जाना था और मैं कहां आ गई ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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