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________________ चांदनी भीतर की वाला, दोष पूर्ण जीवन जीने वाला मुनि। इन प्रश्नों के आधार पर भगवान् महावीर के तीन तालिकाओं का निर्माण किया- ८० ० ० ० जो साधु की न्यूनतम आचार संहिता का पालन करता है, वह भिक्षु होता है । जो साधु की आचार संहिता का सजगता से पालन करता है, निरन्तर अप्रमाद का जीवन जीता है वह पूजनीय साधु होता है । जो साधु की न्यूनतम आचार संहिता का अतिक्रमण करता है, उसका सम्यग् पालन नहीं करता, सतत प्रमाद का जीवन जीता है, वह पापश्रमण होता है। मर्म की बात उत्तराध्ययन में पापश्रमण के लक्षणों का विस्तृत निर्देश है। जो व्यक्ति मुनि जीवन को स्वीकार कर उसके नियमों का सम्यक्तया पालन नहीं करता, साधना की दिशा में आगे नहीं बढ़ता, यह पापश्रमण होता है। ऐसे मुनि को देख कर साधुता सिसकती है, लज्जित होती है। आचार्य प्रदर बहुत बार कहते हैं-- कोई साधु बना और किसी काम में लग गया तो संतोष होता है। यह विश्वास जम जाता है कि वह अपने जीवन को ठीक चलाएगा। साधु बन गया और किसी काम में नहीं लगता है, न स्वाध्याय करता है, न ध्यान, न सेवा और न तपस्या करता है तो बड़ा खतरा बना रहता है। जो साधु बातों में, प्रमाद में, आलस्य में लग गया, उसके जीवन में खतरा बना रहता है। पूज्य कालूगणी कहा करते थे--जो साधु प्रारंभ में ही बातों में लग जाता है, वह बिगड़ जाता है, उसका जीवन नहीं सुधर सकता । आहार करना, पानी पीना, नींद लेना, कपड़े पहनना और जीवन चर्या चलाना एक साधु के लिए सामान्य बात है। यह तो एक गृहस्थ भी करता है। इसमें साधुता की कोई अतिरिक्त बात नहीं है । साधु की अतिरिक्त बात आहार से शुरू नहीं होती । स्वाध्याय स्वाध्याय, ध्यान, पवित्र भाव और तप ये चार साधु की कसौटियां हैं, जो इन कसौटियों का पालन नहीं करता, इनसे विरत रहता है, वह पापश्रमण होता है । पवित्र श्रमण की पहली कसौटी है--स्वाध्याय । पवित्र श्रमण स्वाध्यायशील होता है । पापश्रमण का स्वाध्याय में मन नहीं लगता। बात करने में जितना रस है, पढ़ने में उतना रस नहीं है। यह केवल आज की बात नहीं है, हजारों वर्ष पूर्व भी ऐसी मनोदशा रही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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