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________________ चादनी भीतर की मन का विकल्प मधुकरी गीत नाट्य प्रारम्भ हुआ। एक युवती ने राजा के सामने फूलमालाएं बिछा दीं। नट आता है विभिन्न अदाओं के साथ। फूलमाला का स्पर्श करता है और गायब हो जाता है। मधुर गीत और वाद्ययंत्र की मधुर धुन से वातावरण मधुर बनता जा रहा था। चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त मधुकरी गीत में डूबता चला गया। वह बहुत गहरे में उतर गया। उसके मन में विकल्प उठा-मैंने ऐसा नाटक कहीं देखा है ? यह जाति स्मृति ज्ञान का पहला चरण है-ऐसा मैंने कहीं देखा है ? ऐसा मेंने कहां देखा है ? चक्रवर्ती इस प्रश्न की गहराई में डूबने लगा। वह चेतन मन की सीमा से अवचेतन मन की सीमा में चला गया। चेतन मन का दरवाजा बंद हो गया। जब चेतन मन का दरवाजा बंद होता है, अवचेतन मन का दरवाजा खुल जाता है। जब व्यक्ति अवचेतन मन के स्तर पर पहुंचता है, जाति स्मृति की भूमिका बन जाती है। अवचेतन की सीमा में पहुंचते ही चक्रवर्ती सिहांसन पर बैटा-बैठा ही मूर्छित हो गया। वह मूर्छित होकर नीचे गिरा पड़ा। उसे अपने शरीर का कोई ध्यान नहीं रहा। राजा को इस अवस्था में देख चारों ओर सन्नाटा छा गया। सारे सभासद और विशिष्ट व्यक्ति राजा के पास पहुंचे। चिकित्सक को बुलाने के लिए राज्यकर्मचारी दौड़ पड़े। मत्री राजा पर पंखा झलने लगा। पूर्व जन्म की स्मृति चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त भीतर की गहराइयों में डूब रहा था। लोग इस तथ्य को केसे जान पाते? वे यही सोच रहे थे--राजा मूर्छित हो गया है, बीमार हो गया है। वस्तुतः यह कोई बीमारी नहीं थी। यह अचेतन जगत् में प्रवेश था! वह भीतर में इतना चला गया कि बाहर की कोई सुध-बुध नहीं रही। बाहरी चेतना समाप्त हो गई। उपचार चला, शीतल दवा के स्पर्श से राजा पुनः सचेत हो गया। चेतन जगत् में आते ही वह पुनः चिन्तन में खो गया। उसके मन में चिन्तन उभरा- मैंने कहीं देखा है ? कहां देखा है इसे ? इस प्रश्न की गहराई में जाते जाते चेतना का द्वार खुल गया, वह प्रकाश से भर उठा। अतीत का एक एक पृष्ट स्मृति पटल पर उतरने लगा, उसे याद आया-मैंने ऐसा नाटक सौधर्म देवलोक में पद्मगुल्म नामक विमान में देखा है। इस मधुकरी गीत नाटक को बहुत बार देखा है और यह वही नाटक है। भाई कहां है ? जाति स्मृति-पूर्व जन्म की स्मृति हो गई। राजा को बहुत आह्लाद मिला-ओह! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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