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________________ कर्मणा जातिः इसी आधार पर ब्राह्मण को उच्च और शूद्र को नीच मान लिया गया। यदि हम प्रतीकों की सम्यक् व्याख्या करें तो सारी धारणा ही बदल जाए। यह सारी प्रतीकात्मक भाषा है। जो दिमाग से काम लेता है, वह ब्राह्मण है। इसका अर्थ है-जो बुद्धि से काम लेता है, उसे सिर से पैदा हुआ मान लें। पौरुष का प्रतीक है भुजा। जो पौरुष से काम लेता है, उसे भुजा से पैदा हुआ मान लें। वह है क्षत्रिय । वैश्य की उत्पत्ति मानी गई है पेट से। पेट कौन भरता है ? यदि व्यापारी वर्ग नहीं होता तो सब पेट पर हाथ फेरते। व्यापारी का प्रतीक है पेट। सेवक वर्ग पैर से पैदा हुआ। गतिशीलता का प्रतीक है पैर। इसमें ऊंचा-नीचा कुछ भी नहीं है। गुणों के आधार पर समाज को चार भागों में बांटा गया। इन्हीं चार अपेक्षाओं के आधार पर चार वर्णों की व्यवस्था की गई थी किन्तु कोई भी तथ्य भविष्य में अपना मूल रूप खो देता है। उसके साथ अनेक प्रकार की कल्पनाएं, मान्यताएं और धारणाएं जुड़ जाती हैं। समाज व्यवस्था : प्लेटो की कल्पना प्राचीन जैन आचार्यों ने तीन वर्षों की कल्पना की और वैदिक विद्वानों ने चार वर्णों की कल्पना की। जहां भी समाज और राज्य के बारे में सोचा गया वहां जनता का वर्गीकरण करना जरूरी हो गया। प्लेटों ने आदर्श राज्य की कल्पना की। उन्होंने बताया--समाज में तीन प्रकार के लोग होते हैं--बुद्धिप्रधान, साहसप्रधान और वासना प्रधान। बुद्धि, साहस और वासना--ये तीन अपेक्षाएं हैं। जो बुद्धिप्रधान होता है, वह संरक्षक होता है। जो साहस प्रधान है, वह सहायक संरक्षक होता है। इस श्रेणी के लोग सैनिक या पुलिसकर्मी होते हैं। जो वासनाप्रधान है, वह कृषक या व्यापारी है। कहा गया-प्रत्येक व्यक्ति में ये तीनों प्रधान गुण होते हैं किन्तु तरतमता के आधार पर उसे तीन भागों में बांटा जा सकता है। एक व्यक्ति में बुद्धि प्रधान होती है, साहस और वासना गौण होती है। इतिहास साक्षी है-बहुत से शासक ऐसे हुए हैं, जिनमें साहस तो बहुत था पर बुद्धि कम थी। कुछ लोगों में वासना प्रधान होती है, बुद्धि और साहस गौण होते हैं। व्यापक दृष्टिकोण प्रत्येक व्यक्ति में ये सारी वृत्तियां विद्यमान हैं। आदमी सुबह शौच जाता है, क्या वह शूद्र नहीं है ? आदमी धन कमाता है, क्या वह वैश्य नहीं है ? वह पढ़ता है, क्या वह ब्राह्मण नहीं है ? वह अपने परिवार की रक्षा करता है, क्या वह क्षत्रिय नहीं है ? क्या प्रत्येक आदमी में ये चारों वर्ण नहीं हैं ? यह एक व्यापक और लचीला दृष्टिकोण है। महावीर ने इसी दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया था-जातिवाद और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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