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________________ याद पिछले जन्म की १०७ लिए जमीन को थोड़ा-सा कुरेदना होगा। उसने आलू के एक पादप को उखाड़ते हुए कहा-देखिए, आलू ही आलू हैं। अधिकारी का सिर शर्म से नीचे झुक गया। वहीं खड़े एक व्यक्ति ने व्यंग्य किया-महाशय ! हमने गलत सूचना नहीं दी है। गलती हमारी नहीं है, गलती तो उनकी है जिन्होंने आपको कृषि विभाग का अधिकारी बना दिया। प्रतिकमण : अतीत में लौटने का प्रयोग हमारा ज्ञान भी फसल के नीचे उगाया हुआ है। वह उसके फल को जानने नहीं देता। यदि अज्ञान और मूर्छा का पर्दा हट जाए तो अतीत को जानना आसान हो जाए। अतीत की घटनाओं को जानना, अतीत के लिखे ग्रंथों को जानना एक ही बात है। मूल बात यह है-हम जिस दिशा में प्रस्थान करेंगे, वह दिशा स्पष्ट हो जाएगी। हजार वर्ष पहले किसी ने काव्य लिखा, आज हम उसका अर्थ पकड़ते हैं। यह क्या है ? यह इन्द्रिय का काम तो नहीं है? यह कोई अतीन्द्रिय ज्ञान है हजार वर्ष पहले लिखे का अर्थ पकड़ना। आज का वैज्ञानिक दो हजार वर्ष, पांच हजार वर्ष पूर्व लिखी गई लिपि को पकड़ने का प्रयत्न कर रहा है, उसका अर्थ खोज रहा है। कोई वैज्ञानिक पशुओं की भाषा को पढ़ रहा है, कोई चिड़िया और कबूतर की भाषा को पढ़ रहा है। प्रत्येक व्यक्ति में यह क्षमता होती है। जब व्यक्ति अतीत में लौटता है, तब उसे बहुत सारे नए तथ्य मिलते हैं। प्रतिक्रमण अतीत में लौटने का महत्वपूर्ण प्रयोग है और इसके द्वारा अनेक नई दिशाएं उद्घाटित हो सकती हैं। अतीत में लौटना सीखें अपेक्षा है-हम अतीत में लौटना सीखें, वर्तमान में जीना सीखें और भविष्य का सपना देखना सीखें। हम सौरमण्डल के वातावरण में जी रहे हैं इसलिए एक काल में जीकर हम पूरी बात नहीं कर सकते। जिन लोगों ने अतीत में लौटना सीखा है, उन्हें पूर्व जन्म की स्मृतियां हुई हैं या अन्य विशेष क्षमताएं उपलब्ध हुई हैं। क्षमता एक प्रकार की नहीं होती। आचार्य हेमचंद्र, आचार्य मलयगिरी और आचार्य देवसूरी--तीनों ने एक साथ सरस्वती की आराधना की, सरस्वती सिद्ध हो गई। सरस्वती ने प्रसन्न होकर कहा-वरदान मांगो। आचार्य हेमचन्द्र ने कहा--मुझे राजाओं को प्रतिबोध देने की क्षमता दो। उनका प्रयत्न इस दिशा में चल पड़ा । आचार्य मलयगिरी ने कहा--में आगमों की टीकाएं लिखू। उन्होंने अपनी शक्ति का नियोजन उस दिशा में किया और समर्थ टीकाकार कहलाए। आचार्य मलयगिरी आज भी आगम के समर्थ टीकाकार और व्याख्याकार माने जाते हैं। दुर्लभ हैं ऐसे टीकाकार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003082
Book TitleChandani Bhitar ki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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