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________________ ७२ मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि शक्ति पर भरोसा नहीं है, जो अपना शक्ति को जगाने के लिए कृत-संकल्प नहीं है, जो जागरूक और उद्यमी नहीं है, वे स्वतंत्रता को पसन्द नहीं करते । परतंत्रता की मनोवृत्ति प्रबल है, इसलिए अधिनायकवाद पनपता है । यदि सब लोग स्वतंत्रता की मनोवृत्ति वाले हों तो इसका अंकुर भी नहीं फूट सकता। ऐसा भी होता है कि परतंत्र मनोवृत्ति वाले लोगों से घिरे हुए कुछ स्वतंत्र मनोवृत्ति वाले लोग कठिनाइयां झेलते हैं और अयोग्य करार दे दिए जाते हैं । चापलूसों की भीड़ में स्वतंत्रता का स्वर कहीं खो जाता है । भीड़ का कोलाहल ही अधिनायक के कानों तक पहुंच पाता है। ___कुछ लोग चाहते हैं कि स्वतंत्रता अक्षुण्ण रहे, अधिनायकवादी मनोवृत्ति न पनपे, अधिनायक का अस्तित्व न रहे। पर यह चाह निषेधात्मक है। इसका विधायक पक्ष है--सामाजिक चेतना और शक्ति जागरण का प्रयत्न । हम सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक पहलू से स्वतंत्रता के बारे में सोचते हैं । आध्यात्मिक पहलू को बिलकुल छोड़ देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि व्यक्ति में आकांक्षा, लालसा और सुख-सुविधा की भावना पर नियंत्रण करने की क्षमता नहीं जागती । इसी परिस्थिति में अधिनायकवाद का बीज-वपन होता है और इसी वातावरण में परतंत्रता को नया जीवन मिलता है। बुराई का बिन्दु व्यक्ति की आंतरिक चेतना में जन्म लेता है, सामाजिक वातावरण में उसका विस्तार होता है। हम समस्या का समाधान सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक परिपेक्ष में खोजते हैं। इसका अर्थ होता है हमारा पतझड़ और बसंत में विश्वास है, जड़ में विश्वास नहीं है। जब जड़ सुरक्षित होती है तब पतझड़ और वसन्त दोनों चलते रहते हैं । समस्या का मूल बिन्दु है-आन्तरिक चेतना । उसे बदलने की प्रक्रिया हमारे पास नहीं है। हम समाज को बदलने की बात सोचते हैं। कुछ राजनैतिक प्रणालियों ने समाज को बदलने का प्रयत्न भी किया है, किन्तु जो इष्ट था वह परिणाम नहीं आया । जीवन की संध्या में चीन के भाग्य-विधाता माओ ने कहा था- “मैं अपने स्वप्न को साकार बनाने में सफल नहीं हुआ।” केवल निमित्तों को बदलने में विश्वास करने वाला कोई भी व्यक्ति इस दिशा में सफल नहीं हो सकता । मैं स्यादवाद की भाषा में सोचता हूं इसलिए यह भी कहना पसन्द करूंगा कि केवल उपादानों को बदलने का प्रयत्न करने वाला भी इस दिशा में सफल नहीं हो सकता । हमने उपादानों और निमित्तों को विभक्त कर समस्या को चिरंजीवी बनाने में योग दिया है। समस्या को सुलझाने का सरल मार्ग हो सकता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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