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________________ अनुशासन की समस्या चित्त एकाग्र नहीं होता । यह समस्या किसी एक व्यक्ति की नहीं, हजारों-हजारों व्यक्तियों की है । मन एकाग्र क्यों नहीं होता—यह प्रश्न किसी एक के द्वारा नहीं, हजारों-हजारों के द्वारा पूछा जाता है । किन्तु यह समस्या समाधान से परे नहीं है और यह प्रश्न अनुत्तरित नहीं है । इस समस्या का समाधान है अप्रतिबद्धता और इस प्रश्न का उत्तर भी यही है । मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र में प्रतिबद्ध (committed) है । परिवार, सामाजिक वातावरण—यह बाहरी प्रतिबद्धता है । विचार और संस्कार—यह आन्तरिक प्रतिबद्धता है। प्रतिबद्ध व्यक्ति अकेला नहीं हो सकता और जो अकेला नही होता, वह एकाग्रचित्त भी नहीं हो सकता। समस्या एकाग्रता की नहीं है। समस्या है प्रतिबद्धता की। मनुष्य बड़ा विचित्र है। वह प्रतिबद्धता को छोड़ना नहीं चाहता और एकाग्रता को चाहता है। इस विसंगति का कोई समाधान नहीं हो सकता। क्या सामाजिक जीवन में अप्रतिबद्ध होकर जीना संभव है ? सहज ही यह पूछा जा सकता है। कोई भी सामाजिक प्राणी अकेला होकर जी नहीं सकता। इसलिए शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रतिबद्ध होना आवश्यक है। मनुष्य चेतना के स्तर पर अप्रतिबद्ध हो सकता है। चित्त की एकाग्रता का आधार बिन्दु भी यही है। यही है समर्पण । यही है अनुशासन । सामाजिक व्यवस्था के क्षेत्र में अनुशासन नियंत्रण में खोजा जाता है। केवल समाज-व्यवस्था को बदलने का प्रयत्न किया जाता है । वह प्रयत्न तानाशाह को जन्म देने का प्रयत्न है। उससे जनता और अधिक संताप भोगती है । जैसे-जैसे नियंत्रण की पकड़ मजबूत होती है, वह परतंत्र बनती जाती है। अध्यात्म के क्षेत्र में अनुशासन का आधार है व्यक्ति की आन्तरिक चेतना को बदलना । उसके बिना कोई भी परिर्वतन सफल नहीं हो सकता। आध्यात्मिक आस्था है कि हर व्यक्ति में बदलने की क्षमता है और उपयुक्त सामग्री उपलब्ध होने पर वह बदल सकता है,चेतना का रूपान्तरण कर सकता है । जैसे-जैसे विचारों और संस्कारों की प्रतिबद्धता कम होती है, वैसे-वैसे व्यक्ति समर्पित होता जाता है। यह समर्पण की प्रकिया ही अनुशासन के विकास की प्रकिया है ।जो जिसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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