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________________ मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि और कुछ सोचने को मिला । आज सारे संसार में एक प्रश्नचिह्न बना हुआ है कि धर्म हमारे लिए जरूरी है या रोटी? एक पलड़े पर धर्म है और दूसरे पलड़े में रोटी है । हम महावीर की चर्चा करें, महावीर की जयन्ती मनाएं, धर्म की चर्चा करें, धर्म का समारोह मनाएं तो इन दोनों के बीच में खड़ा रहना होगा। एक पलड़े में धर्म होगा, महावीर होंगे या कोई और अवतार होगा और दूसरे पलड़े में रोटी-पानी होगी। हम दोनों के सन्दर्भ में किसकी चर्चा करें? क्या करें? यदि रोटी के सन्दर्भ में हम धर्म की चर्चा करते हैं तो ऐसा लगता है कि रोटी की समस्या है ही नहीं। ___ मैंने प्रश्न के उत्तर में कहा-अपना-अपना दृष्टिकोण है । एक ही बात को हम दो दृष्टियों से ही नहीं, हजार दृष्टियों से देख सकते हैं । द्रष्टा का अपना-अपना दृष्टिकोण होता है । राम ने हनुमान से पूछा कि जहां सीता रहती थी वह वाटिक कैसी थी? वाटिका में क्या था? उसके पेड़ पौधे कैसे थे? उसके फूल कैसे थे? हनुमान ने सारा वर्णन किया कि फूलों की बगिया थी, फूल थे, सारे फूल लाल ही लाल थे। वह लाल फूलों की बगिया थी । सीता से भी पूछा । उन्होंने भी कहा-सही बात है । हनुमान का सारा वर्णन सही है, पर एक बात वह गलत कह रहा है । फूल लाल नहीं, फूल बिलकुल सफेद थे। वह सफेद फूलों की बगिया थी। कितना बड़ा अन्तर? दोनों प्रत्यक्षदर्शी । सीता भी प्रत्यक्षदर्शी और हनुमान भी प्रत्यक्षदर्शी । सुनी-सुनाई बात झूठी हो सकती है पर आंखों-देखी बात और वे भी दोनों आंखों से देखने वाले । हनुमान कहते हैं फूल थे लाल और सीता कहती हैं फूल थे सफेद । बहुत बड़ा अन्तर है। राम तो द्रष्टा थे। उन्होंने कहा-बिलकुल ठीक है। सीता ने कहा-यह गलत कह रहा है। राम ने कहा-यह बिलकुल ठीक कह रहा है, गलत नहीं कह रहा है । सीता घोर आश्चर्य में पड़ गई । मैं वहां रही, फूलों को देखा और राम मुझे झूठा बता रहे हैं, हनुमान की बात को सच कह रहे हैं। यह कैसे? सीता ने पूछा-दोनों ठीक कैसे हो सकते हैं ? राम ने कहा-तुम शान्त थीं । तुमने शान्त आंखों से फूलों को देखा, इसलिए तुम्हें फूल सफेद ही दिखाई दिए । हनुमान ने क्रोध भरी आंखों से, उत्तेजना भरी आंखों से फूलों को देखा है इसलिए उसे लाल ही दिखाई दिए, सफेद कैसे दिखाई देते? दोनों ठीक ही कहते हो। एक बात को अनेक दृष्टियों से देखा जा सकता है । देखने का कोण एक ही नहीं होता, देखने की दृष्टि एक नहीं होती। अगर हम व्यापकता में जाएं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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