SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि एक रोगी डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने कहा-तुम नशीली चीजों से दूर रहा करो । रोगी ने बात मान ली। वह अब लम्बी नली में सीगरेट डालकर पीने लगा। एक फुट लम्बी नली को देखकर एक वयक्ति ने पूछा-सिगरेट पीने का यह क्या तरीका है। उसने कहा-नशीली चीजों से दूर रहने की सलाह डॉक्टर ने दी है, इसलिए मैं तम्बाकू से दूर रहता हूँ, नजदीक नही जाता। ___ बीच में एक फुट लम्बी नली है तो वह तम्बाकू से एक हाथ दूर है। किन्तु इस दूरी का अर्थ कुछ भी नहीं होता. हमारे शब्दों की नली भी बहुत लम्बी है । हम बचने का बहुत प्रयत्न करते हैं, किन्तु जब तक भूल का शोधन नहीं हो जाता, तब तक कठिनाइयाँ बढ़ती चली जाती हैं, कम नहीं होती। यह पर्व विस्मृति का पर्व है । विस्मृति बहुत बड़ा वरदान है । स्मृति जितना बड़ा वरदान है, उतना ही बड़ा वरदान है विस्मृति। यह पर्व मनोवैज्ञानिक पर्व है । इसकी एक पूरी श्रृंखला है । प्रियता-अप्रियता का मैले जमे तो उसे पन्द्रह दिन से स्नान कर साफ कर ले । यह है पाक्षिक स्नान । उससे भी यदि ज्ञात हो जाए कि पूर्ण शुद्धि नहीं हुई है तो चातुर्मासिक स्नान करें। उससे भी कलुषता न मिटे तो दूसरी बार फिर चातुर्मासिक स्नान करे, तीसरी बार चातुर्मासिक स्नान करे । इससे भी यह अनुभर हो कि पूरी शुद्धि नहीं हुई है तो फिर वार्षिक महास्नान करे । जिसकी इस वार्षिक महास्नान से भी शुद्धि नहीं होती तब मान लेना चाहिए कि रोग असाध्य है । वह न सम्यक्दृष्टि है, न श्रावक है और न साधु है, कुछ भी नहीं। यह पर्व चिकित्सा का एक महान् सूत्र है और सिद्धि का भी एक महान् सूत्र तेरापंथ धर्मसंघ सहिष्णुता का धर्मसंघ है। सका पूरा इतिहास सहिष्णुता की घटनाओं से भरा पड़ा है। आचार्य भिक्षु महा क्षमाशील थे। मैं सोचता था आचार्यश्री जब इस दिन पर सबसे क्षमायाचना करते हैं तब इतने भाव-विभोर कैसे हो जाते हैं ? कहां से सीखा इन्होंने ? किन्तु जब आचार्य भिक्षु को पढ़ा तो मुझे लगा कि आचार्य तुलसी कोई नया काम नही कर रहे हैं । परम्परा क ही पालन कर रहे हैं, अपने आचार्यत्व को ही निभा रहे हैं, जिस आसन पर आसीन हैं, उसकी विधि का अनुसरण कर रहे हैं । आचार्य भिक्षु ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में एक-एक साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं को याद कर क्षमायाचना की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy