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________________ १६८ मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि लिया। जो व्यक्ति केवल ग्रन्थों या शास्त्रों के आधार पर चलता है, अतीत के आधार पर चलता है. उसके साथ वर्तमान का योग नहीं जुड़ पाता, गणित फेल हो जाता है। आचार्य भिक्षु ने केवल एक पद आचार्य' का रखा । लोगों ने कहा—'महावीर के समय की यह परम्परा है कि संघ में सात पद होते हैं। महावीर की परम्परा आपने कैसे मिटा दी?' आचार्य भिक्षु ने कहा-'सातों पदों को मैं ही देख रहा हूँ।' जब राष्ट्रपति शासन होता है तो पूरा मन्त्रिमण्डल उसमें समाहित हो जाता है। शास्त्रों की परम्परा के अनुसार यदि तेरापंथ में सात पद रख भी दिए जाते तब भी उसका रूप नहीं बन पाता । जो अनुशासन, जो संगठन, जो व्यवस्था आज तेरापंथ में है वह न केवल भारतीय समाज में बल्कि पूरे संसार के धार्मिक सम्प्रदायों में अद्वितीय मानी जा रही है । उसके पीछे है आचार्य भिक्षु का वर्तमान युग-चेतना के साथ तादात्म्य और विवेकपूर्ण दृष्टि । आचार्य भिक्षु ने कुछ घोषणाएं कीं, कुछ ऐसे सिद्धान्त दिए जो आगमों में स्पष्ट नहीं है, पर उन्होंने उनको इतना विकसित किया कि आज वे वर्तमान के विचार बन रहे हैं। तेरापंथ की विचारधारा सदैव युग के साथ चली है और हमारी मान्यता रही है कि तेरापंथ का आचार्य वह होता है जो वर्तमान युग का प्रतिनिधित्व करता है। जब आचार्य भिक्षु की जरूरत थी तब आचार्य भिक्षु जन्मे, जयाचार्य की जरूरत थी तो जयाचार्य, कालूगणी की जरूरत थी तो कालूगणी और आचार्य तुलसी की जरूरत हुई तो आचार्य तुलसी जन्मे । अगर आचार्य तुलसी आज से दो सौ वर्ष पहले जन्म लेते और जयाचार्य आज जन्म लेते तो यह विपर्यय होता, किन्तु जयाचार्य की जरूरत थी दो सौ वर्ष पहले जबकि तेरापंथ की विचारधारा को गतिमान बनाना था और आचार्य तुलसी की जरूरत है आज जब युग-चेतना के साथ अणुव्रत के माध्यम से तेरापंथ की विचारधारा को जोड़ना था। आज के युग की अपेक्षा है-शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक समस्याओं के समाधान की। गरीबी की समस्या का समाधान धार्मिक मंच से नहीं, अपितु कृषि के विकास से होगा; किन्तु मानसिक समस्या का समाधान भौतिक जगत् के पास नहीं है । किसी वैभव की सत्ता में इतनी ताकत नहीं जो इस समस्या का समाधान दे सकें । एकमात्र आध्यात्मिक और धार्मिक मंच ही इस समस्या का समाधान दे सकते हैं । तेरापंथ ने इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करने की क्षमता अर्जित की है। अपेक्षा उसी से कीजा सकती है जिसके पास शक्ति हो । स्वंय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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