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________________ यथार्थ विज्ञान : जीवन विज्ञान आज अनेक समस्याएं हैं। वे सबके सामने स्पष्ट हैं। प्रश्न है उनके समाधान का । क्या इनका समाधान है या अनन्तकाल तक ये बनी रहेंगी ? क्या हृदय का परिवर्तन किया जा सकता है ? आज समस्त मानव जाति के सामने हिंसा, अपराध और आक्रमण की समस्याएं हैं । ये सबको परेशान कर रही हैं। इनसे भी बड़ी और जटिल समस्या है मानसिक तनाव की । क्या इन समस्याओं से बचा जा सकता है? आचार्यवर ने इन समस्याओं पर गंभीरता से चिन्तन किया और समाधान के रूप में अणुव्रत आन्दोलन का प्रवर्तन किया। एक नवीन आचार और विचार प्रस्तुत किया । आजादी के पूर्व लोगों का चिन्तन था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नये निर्माण होंगे । दूध-दही की नदियां बहेंगी। खुशहाली और अमन-चैन होगा | स्वतंत्रता का अपना एक उन्माद होता है । परतंत्रता के बाद स्वतंत्रता मिलने पर चिन्तन ओर दृष्टिकोण में परिवर्तन आ जाता है। आजादी मिलने के बाद जो कल्पनाओं के महल खड़े थे, वे ढह गए मोह भंग हो गया । राजनैतिक आजादी मिली, मानसिक गुलामी अपनी जगह कायम रही । आचार्यश्री ने मूल सचाई को पकड़ा। अणुव्रत की आचार संहिता प्रस्तुत की । वह सचाई यह है कि हम लोग चाहे धर्म के क्षेत्र में हों या शिक्षा के क्षेत्र में, सिद्धान्त को जितना महत्तव देते हैं, उतना प्रयोग को नहीं । प्रवचन, उपदेश में विश्वास करते हैं, प्रयोग में नहीं । बहुत बड़ा प्रश्न 1 धर्म-क्षेत्र के सामने कि इतने धर्मगुरु, धर्मोपदेशक और धर्मग्रन्थ हैं, फिर भी समाज बदल नहीं रहा है । इतनी विद्या की शाखाएं, इतने विद्यालय, इतने शिक्षक फिर भी विद्यार्थी बदल नहीं रहे हैं। इसका कारण है कोरा उपदेश । गीता का प्रवचनकार अनासक्त योग पर बहुत अच्छा बोल देता है, किन्तु स्वयं अनासक्त नहीं बनता । जैन आगमों का एक व्याख्याता अहिंसा, करूणा, मैत्री आदि पर बहुत अच्छा प्रवचन दे देता है पर अपने स्वयं के जीवन में अहिंसा, अपरिग्रह का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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