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________________ विशोधन की प्रक्रिया प्रेक्षा ध्यान चोट करना सीखें “ बदलना प्रकृति का नियम है। हर पदार्थ परिवर्तनशील है । कोई भी बहुत दिनों तक अपने मूलरूप में नहीं रहता । फिर वृत्तियाँ या स्वभाव नहीं बदल सकतीं, यह धारणा क्यों बना ली गई है। बहुत अपेक्षा है बदलने की, किन्तु किस दिशा में बदलें यह चुनाव का विषय है। सबसे अच्छी दिशा है मानसिक विकास या चैतसिक विकास की । आदमी की यह भी एक प्रकृति है कि वह हर बात के साथ अपने अहंकार को जोड़ देता है । इस प्रवृत्ति के कारण ही वह भारयुक्त बना है । एक बुढ़िया को यह अहं हो गया कि मुझसे ज्यादा रूई और कोई कात नहीं सकता । एक दिन उसने देखा कि रूई से लदा एक जहाज समुद्र के किनारे आकर लगा। इतनी बड़ी मात्रा में रूई को देखकर वह हैरान रह गई । मन में तत्काल ही प्रश्न उठा- इतनी रूई कौन कातेगा ? बार-बार यही प्रश्न उसके मस्तिष्क में उठता- इतनी रूई कौन कातेगा ? बुढ़िया विक्षिप्त हो गई । लम्बी सांस भरते हुए बस यही एक प्रश्न वह बार-बार दुहराती । घर के लोग परेशान । डाक्टरों की चिकित्सा फेल हो गई । अन्ततः एक मनोचिकित्सक बुढ़िया का इलाज करने आया । सारी स्थिति का सूक्ष्मता से अध्ययन किया। तेजी से रूई कातने वाली वह बुढ़िया समुद्र के किनारे रूई के जहाज को देखकर पागल हुई थी, यह जानकर तुरन्त उसने बीमारी पकड़ ली। बुढ़िया के पास जाकर उसके कान में उसने कहा - ' मांजी । जहाज की सारी रूई जल गई । " सारी रूई जल गई ?' यह कहकर बुढ़िया खुशी से उछल पड़ी। मन की उलझन समाप्त और बुढ़िया स्वस्थ । प्रेक्षा ध्यान एक भावात्मक या मानसिक चिकित्सा है, और कुछ नहीं । केवल देखना और केवल जानना कि हमने अपने मस्तिष्क में कितना कुछ कबाड़ भर रखा है । जानते और देखते तो हैं किन्तु उसके साथ प्रियता या अप्रियता का भाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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