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________________ हिन्दू' शब्द की युति कहां ? कैसे ? १४५ युवाचार्य-उस समय की स्थिति दूसरी थी। उस समय मुसलमान और हिन्दू आमने-सामने थे । मगर आज का सिक्ख क्या कहता है ? 'हिन्दू' शब्द से ही अगर जैन, बौद्ध और सिक्ख अलग हो जाते है, इसके कोई कारण तो हैं । कारण इसका बस एक ही है कि हिन्दू को धर्म के साथ जोड़ दिया गया और हिन्दू धर्म को वैदिक धर्म मान लिया गया। कोई भी हिन्दू धर्म की व्याख्या करता है तो वह गीता, रामायण, वेद, उपनिषद् तक ही स्थिर हो जाता पांचजन्य-हिन्दू धर्म के अन्तर्गत अगर सबको ले लिया जाए---वेद, गीता, उपनिषद, धम्मपद, आचारांग सूत्र, गुरुग्रन्थ साहिब तो क्या आप हिन्दू कहलाना स्वीकार करेंगे? युवाचार्य-शास्त्रीय दृष्टि से अर्थ का विस्तार भी होता है और अर्थ का संकोच भी होता है। अगर इसको अर्थ-विस्तार दिया जाए और सभी भारतीय धर्मों को सम्मिलित करके हिन्दू धर्म को मान्यता दी जाए तो बहुत भला होगा। हिन्दू धर्म की स्पष्ट परिभाषा तय की जाए। सभी धर्मों के प्रमुख विद्वान बैंठें तथा मिलकर सहमति करें तो इस समस्या का एक हद तक समाधान मिल सकता है । ____ पांचजन्य-हिन्दू धर्म न रहकर राष्ट्र या संस्कृति ही होती तो क्या आज की स्थिति उस समय नहीं होती? जिनकी निष्ठा बाहर के मुल्कों से है, जो समय-समय पर देखा गया है और आज भी स्पष्टतः देखा जा रहा है, क्या इस इतिहास की पुनरावृत्ति उस समय नहीं होती? युवाचार्य-जहां तक निष्ठा वाली बात है यह आरोप सब पर लागू नहीं हो सकता। कुछ ही लोग ऐसे हैं । ऐसे भी बहुत सारे मुसलमान और ईसाई हैं जो राष्ट्र को समर्पित हैं और ऐसे बहुत सारे हिन्दू हैं जो यद्धकाल में दूसरे देशों के लिए जासूसी करते हैं । शत्रुओं के प्रलोभन में आ जाते हैं। ये तो हर जाति में होता आया है, परन्तु सब ऐसे नहीं होते। पांचजन्य-हिन्दू संस्कृति की भी बात जब आती है तो इसमें सभी सम्प्रदाय के लोग आ जाते हैं जब कि मुसलमान इसे स्वीकर नहीं करते ।। युवाचार्य-स्वीकार तो इसलिए नहीं करते कि हिन्दू का अर्थ ही संकुचित हो गया है । अगर यह राष्ट्रीयतापरक होता तो इसे स्वीकार करते। पांचजन्य-मुसलमान तो अपने को भारतीय कहने में भी संकोच का अनुभव करते हैं । वे राष्ट्रीय गीत का बहिष्कार करते हैं। पिछले साल मुरादाबाद में पन्द्रह अगस्त के दिन मुसलमानों ने काला झण्डा फहराया.... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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