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________________ अहिंसक समाज-संरचना कैसे होगी? अहिंसक समाज और हिंसक समाज, ये दोनों सापेक्ष शब्द हैं। कोई भी ऐसा नहीं हो सकता, जो केवल हिंसा या अहिंसा के आधार पर चल सके। जीवन-निर्वाह के लिए हिंसा करनी पड़ती है। अपनी, अपने व्यक्तियों और वस्तुओं की सुरक्षा के लिए हिंसा की बाध्यता आती है। इस स्थिति में विशुद्ध अहिंसक समाज की कल्पना कैसे की जा सकती है? समाज की रचना अहिंसा के आधार पर हुई है। यदि मनुष्य हिंसक जानवरों की भांति एक-दूसरे को खाने दौड़ते तो समाज का निर्माण ही न होता । एक-दूसरे के हितों में बाधा न डालने का समझौता सामाजिक जीवन का सुदृढ़ स्तम्भ है । अतः विशुद्ध हिंसक समाज की भी कल्पना नहीं की जा सकती । निष्कर्ष की भाषा में कहा जा सकता है—समाज हिंसा और अहिंसा दोनों के योग से चलता है। कोरी अहिंसा के बल पर वह चल नहीं पाता और कोरी हिंसा के बल पर वह टिक नहीं पाता। इस दुनिया में वही समाज अपना अस्तित्व सुरक्षित रख सकता है, जो शक्तिशाली है । शक्ति के स्रोत तीन हैं—अर्थ, सत्ता और धर्म । अर्थ और सत्ता ये दोनों हिंसा के आधार पर चलते हैं और ये जीवन की प्राथमिक आवश्यकता की पूर्ति करते हैं। धर्म का आधार है— अहिंसा । वह जीवन को उच्चता प्रदान करती है। समाज-रचना के मूल में अर्थ और धर्म नहीं लगता। उसका प्रथम आकर्षण अर्थ के प्रति, दूसरा सत्ता के प्रति और तीसरा धर्म के प्रति है । इसलिए अर्थ और सत्ता के पास जितना शक्तिसंचय है, उतना धर्म के पास नहीं है । इस परिस्थिति में अहिंसक समाज की रचना का प्रश्न बहुत उलझनें उत्पन्न कर देता है। हिंसक समाज और अहिंसक समाज इस दोनों को परिभाषा में बांधना, इनके बीच भेदरेखा खींचना सरल कार्य नहीं है, फिर भी व्यवहार-संचालन के लिए ऐसा करना ही होगा। जिस समाज में अर्थ और काम की प्रधानता और आचार धर्म की गौणता या अवहेलना होती है, वह हिंसक समाज कहलाता है । जिस समाज में अर्थ, काम और धर्म-तीनों की संतुलित उपासना होती है, वह अहिंसक समाज कहलाता है । हिंसक समाज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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