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________________ २२ : जैन योग के सात ग्रंथ इस श्लोक में कायोत्सर्ग के फल संबंधी उदाहरण दिए गए हैं१. सती सुभद्रा - वसन्तपुर नगर के सेठ जिनदत्त की पुत्री का नाम सुभद्रा था। उस पर झूठा आरोप आया। देवता ने आरोप से मुक्त होने का उपाय बताया। वाराणसी के सारे नगर-द्वार बंद हो गए। सुभद्रा ने कायोत्सर्ग कर चालनी से पानी निकालकर द्वारों पर छिड़का। वे खुल गए। सारे नगर में उसकी प्रशंसा हुई। २. राजा उदितोदित - राजा की पत्नी अन्तःपुर में आए मुनि को पीड़ित करती । राजा ने कायोत्सर्ग द्वारा सारा उपद्रव शांत कर डाला । ३. श्रेष्ठी भार्या - चंपानगरी में सुदर्शन नाम का श्रेष्ठी-पुत्र रहता था। उसकी भार्या का नाम मित्रवती (मनोरमा) था। एक बार राजा की पटरानी ने सुदर्शन को अपने साथ भोग भोगने की प्रार्थना की। उसने इस प्रार्थना को ठुकरा दिया। एक दिन सुदर्शन कायोत्सर्ग में स्थित था। रानी ने उसे बंधवा कर अपने अंतःपुर में मंगा लिया। रानी ने भोग की प्रार्थना की। सुदर्शन मौन रहा। रानी ने कोलाहल किया। सिपाही आए और उसे पकड़कर राजा के समक्ष उपस्थित किया। राजा ने वध का आदेश दे डाला। सिपाही उसे वध - स्थान की ओर ले जा रहे थे। मित्रवती ने देखा । वह कायोत्सर्ग में स्थित हो गई । यक्ष की आराधना की। प्रधान वधक ने आदेश दिया कि सुदर्शन आठ टुकड़े कर डालो। दूसरे वधकों ने तलवार का प्रहार किया । तलवार फूल की माला बन गई। राजा ने उसे मुक्त कर दिया। मित्रवती ने कायोत्सर्ग सम्पन्न किया । ४. खड्ग-स्तंभन - एक मुनि था। उसने श्रामण्य का विधियुक्त पालन नहीं किया। वह मरकर खड्ग - गेंडा बना । वह पथिकों को मारने लगा। एक बार उस मार्ग से साधु निकल रहे थे। गेंडे ने उन्हें देखा। वह उन्हें मारने दौड़ा। वे कायोत्सर्ग में स्थित हो गए। उन्हें देख वह शांत हो गया । - ये सारे ऐहिक फल हैं। कायोत्सर्ग का पारलौकिक फल है-मोक्ष अथवा स्वर्गगमन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003079
Book TitleJain Yoga ke Sat Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2006
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size5 MB
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