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________________ मैत्री : जीवन के साथ आज की जीवन प्रणाली शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है । आज न केवल शारीरिक स्वास्थ्य गड़बड़ा रहा है, मानसिक स्वास्थ्य भी गड़बड़ा रहा है। और जब मन स्वस्थ नहीं होता तो हिंसा बढ़ती है, अपराध, हत्याएं और आत्म-हत्याएं बढ़ती हैं। जीवन प्रणाली को बदलना जरूरी है। जीवन के साथ वही व्यक्ति मैत्री स्थापित कर सकता है जो जीवन प्रणाली को बदले । बिना बदले न तो अच्छा जीवन जीया जा रहा है और न अच्छी मौत से मरा जा रहा है। जीवन और मौत-दोनों साथ जुड़े हुए हैं । जो अच्छा जीवन नहीं जी सकता, वह अच्छी मौत भी नहीं मर सकता । अच्छा जीवन जीने के लिए मौत बहुत बड़ा माध्यम है । और अच्छी मौत मरने के लिए जीवन बहुत बड़ा माध्यम है। दोनों में गहरा संबंध है। वर्तमान जीवन प्रणाली की सबसे बड़ी समस्या है, भय की अनुभूति । आज का आदमी जितना भयभीत है उतना शायद अतीत में कभी भी नहीं रहा होगा । पुराने जमाने में लड़ाइयां भी होती थीं और युद्ध भी होते थे। यह कोई नई बात नहीं है, पर आदमी बहुत आश्वस्त था और इसलिए कि लड़ाई के मोर्चे पर कोई मारा जाएगा तो लड़ने वाला सैनिक मारा जाएगा। नागरिक के सामने कोई खतरा नहीं था और उसके सामने कोई समस्या नहीं थी। आज सब बदल गया। लड़ाई कहीं चल रही है और बम-वर्षा कहीं हो रही है । आदमी आश्वस्त नहीं है और कहीं भी विश्वास नहीं कर सकता । प्राचीन काल में आदमी बहुत स्वतन्त्र था। जीने के लिए काफी स्वायत्तता थी। व्यापार करता पर कोई डर नहीं था । व्यापार के साथ भय जुड़ा हुआ नहीं था । आज तो व्यापार के साथ इतना भय जुड़ा हुआ है कि बड़े-बड़े व्यापारी निरन्तर भय-ग्रस्त रहते हैं । रक्तचाप और हृदय की बीमारी जैसे बड़े व्यवसाय के साथ जुड़ी हुई हो, ऐसा लगता है। स्वतंत्र जीवन कम है । शोषण भी ज्यादा है । शोषण के तरीके भी बहुत निकल गए । वर्तमान में भय की व्याप्ति बहुत है। यह एक समस्या है। दूसरी समस्या है-व्यस्तता । आज की जीवन प्रणाली में आदमी इतना व्यस्त है कि शायद अतीत में नहीं रहा हो। भारतीय आदमी तो बहत ज्यादा व्यस्त है । व्यस्तता का परिणाम दो चीजों पर ज्यादा आया है—एक भोजन पर और एक नींद पर । आदमी व्यस्तता के कारण न तो समय पर भोजन कर पाता है और न समय पर नींद ले पाता है। भोजन भी अनियमित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003077
Book TitleJivan ki Pothi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages202
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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