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________________ ८० जवन विकास के सूत्र करता है, तो कोई तर्क नहीं कि उसे अनुपादेय कहा जाए। किन्तु यदि वह अपना हित-साधन के लिए उन्हें शासित करता है तो वह समानता की आधार-शिला को जर्जरित करता है। दूसरों की स्वतंत्रता में अमिट विश्वास हो तो क्या कोई व्यक्ति अन्याय कर सकता है ? स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है । यदि उसे लोकतंत्र से अलग कर दिया जाए तो लोकतंत्र का अर्थ होगा निरंकुश राज्य । स्वतंत्रता में अमेघ आस्था रखने वाला आक्रान्ता कैसे होगा ? परतंत्रता की श्रृंखला का निर्णय केवल दूसरों के लिए नहीं होता। स्वतंत्रता में अभेघ आस्था रखने वाला आक्रान्त कैसे होगा ? चिनगारी जो है, वह कभी भी अग्नि का रूप ले सकती है। प्रामाणिकता दूसरों के प्रति सच्चा रहना प्रमाणिकता तो है किन्तु यह भाषा कभी भी मुझे आकृष्ट नहीं कर सकी । प्रामाणिकता की जो परिभाषा मुझे आकृष्ट कर सकी, वह है "अपने प्रति सच्चा रहना । जो दूसरों का कुरा करने में अपना बुरा देखता है, वह बुराई से बच सकता है, पर-निरपेक्ष दृष्टि से प्रामाणिक रह सकता है। जिसकी सचाई का आधार व्यवहार की पृष्ठभूमि होता है, वह सच्चा रहता है तब, जब कोई दूसरा देखता है । वह सच्चा रहता है तब, जब प्रकाश में होता है। अकेले में और अंधेरे में जो सच्चाई प्राप्त होती है, वह अपने पर ही आधारित हो सकती है। जो अपने प्रति सच्चा नहीं होता, वह राष्ट्र के प्रति कभी भी सच्चा नहीं होता। कई आदमी राष्ट्र की भलाई के लिए सच्चे होते हैं और कई अपनी भलाई के लिए । सचाई का बीज हर मनुष्य में होता है । वह निमित्त का निमित्त पाकर अंकुरित हो उठता है । जो अपनी आतरिक प्रेरणा से अंकुरित होता है, वह परिस्थिति से प्रभावित नहीं होता। बाहरी प्रेरणा से अंकुरित होने वाले के लिए यह निश्चित भाषा नहीं बनाई जा सकती कि वह परिस्थिति से प्रभावित नहीं होता, पर प्रामाणिकता लोकतंत्र का सौन्दर्य तो है ही, फिर चाहे वह किसी भी निमित्त से प्रस्फुटित हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
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