SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुख और शान्ति सुख की खोज सुलभ नहीं तो शायद उसका प्रतिपादन भी सुलभ नहीं । १५ अगस्त के दिन सुख और शान्ति पर चर्चा चली परन्तु समय हो चला, उसे अधर में ही छोड़ देना पड़ा । पर उसे छोड़ा कैसे जा सकता है ? मनुष्य की सारी साधना सुख और शान्ति के लिए होती है । यह मनुष्य का नैसर्गिक स्वभाव है । प्रश्न यह होता है कि जब मनुष्य सुख और शान्ति की साधना करता है तो उसे अशान्ति क्यों मिलती है ? बिना चाहे ही अशान्ति क्यों आ जाती है ? अब इस पर हमें विचार करना है । अशान्ति दो प्रकार की होती है— एक कल्पनाप्रसूत अशान्ति और दूसरी मान्यताप्रसूत अशान्ति । इसी तरह सुख के कई प्रकार हैं- आरोग्य सुख, दीर्घायु सुख, सम्पन्नता सुख, आदि आदि । प्रत्येक मनुष्य स्वस्थ रहना चाहता है, प्रत्येक मनुष्य दीर्घायु होना चाहता है और प्रत्येक मनुष्य सम्पन्न होना चाहता है । मनुष्य ही क्यों, प्रत्येक राष्ट्र के अधिनायक भी यही चाहते हैं कि हमारा राष्ट्र सब प्रकार से समृद्धिशाली, सुखी बनें। आजकल जिस राष्ट्र की जनता सुखी नहीं होती उसको अच्छा नहीं समझा जाता । हमारे देश के प्रधानमंत्री ने अभी कुछ ही दिन हुए अपने एक भाषण में कहा था कि स्वतन्त्रता के प्राप्त होने के पश्चात् हमारे देशवासियों की आयु में वृद्धि हुई है। इसी प्रकार प्रत्येक राष्ट्र के कर्णधार यही चाहते हैं कि हमारे देश के वासी अधिक-से-अधिक सुखमय जीवन व्यतीत करें । मनुष्य में जब माया, मोह और लोभ आदि का आवेग आ जाता है तब उसे अशान्ति होती है । शान्ति नहीं तो सुख भी नहीं । शान्ति के बिना मनुष्य सुख की अनुभूति भी नहीं कर सकता । धन सुख का साधन माना जाता है परन्तु यदि एक धनी मनुष्य रुग्ण है तो उसे शान्ति की अनुभूति नहीं होती । इसी प्रकार यदि एक मनुष्य अच्छा-अच्छा भोजन करने में सुख का अनुभव करता है और वही यदि उसे बुखार से पीड़ित होने पर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003076
Book TitleTat Do Pravah Ek
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1967
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy