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________________ गतिका क्रम मैंने आगे बढ़े हुए पैर से पूछा, तुम बड़े हो ? उसने उत्तर दिया, नहीं । फिर आगे क्यों? उसके गर्वको सहलाते हुए मैंने कहा । उसने उत्तर दिया, गतिका यही क्रम है | मैंने पीछे रहे पैरसे पूछा, तुम छोटे हो ? उसने उत्तर दिया, नहीं । मैंने फिर पीछे क्यों ? उसके गर्वपर हलकी-सी चोट करते हुए उसने उत्तर दिया, गतिका यही क्रम है । मैंने दूसरे ही क्षण देखा, आगेवाला पैर पीछे है और पीछेवाला आगे । मैं मौन नहीं रह सका । मैं कह उठा, यह क्यों ? दोनोंने एक स्वर से उत्तर दिया, गतिका यही क्रम हैं । मैं विस्मय-भरी आँखोंसे देखता रहा चले जा रहे थे । वे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते - भाव और अनुभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only कहा । १५ www.jainelibrary.org
SR No.003075
Book TitleBhav aur Anubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1965
Total Pages134
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size3 MB
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