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________________ २६ / अश्रुवीणा गीतिकाव्य है। जब कवि की स्वात्मानुभूति सुख-दुःख या अन्तर्वेदना स्वाभाविक स्वर-लहरियों से युक्त होती हैं, जब गीतिकाव्य का जन्म होता है। महादेवी वर्मा के अनुसार जब भावावेश अवस्था में स्वात्मगत सुख-दुःख की अभिव्यक्ति होती है तो गीतिकाव्य बनता है। कभी-कभी वे क्षण आते हैं जब सफल व्यक्तित्व-सम्पन्न पुरुष की, अपने प्रिय को याद कर या उसके प्रति श्रद्धा भक्ति से अथवा अन्य किसी कारण से, आँखें थम जाती हैं। वह कुछ प्रलाप करने लगता है। वह प्रलाप ही गीति-काव्य है। अश्रुवीणा का कवि भी अवश्य ही इस अवस्था से गुजरा होगा। अश्रुवीणा' में ये सभी अभिव्यक्तियाँ परिलक्षित होती हैं: 1. श्रद्धा की पूर्ण अभिव्यक्ति- उस सोतस्विनी का प्रारम्भ श्रद्धा के धरातल से ही होता है। जब किसी प्रेमी या उपास्य के प्रति श्रद्धा की अतिरेकता हो जाती है, श्रद्धा के वशीभूत हो कवि संसार से अलग हटकर तन्मयत्व की स्थिति में चला जाता है, तब वह इतना विगलित होता है कि कभी वह श्रद्धा की परिभाषा देता है तो कभी श्रद्धा को ही सर्वस्व मान बैठता है: श्रद्धे! मुग्धान् प्रणयसि शिशून्दुग्धदिग्धास्यदन्तान् भद्रानज्ञान् वचसि निरतांस्तर्कवाणैरदिग्धान्। विज्ञाश्चापि व्यथितमनसस्तकं लब्धावसादा त्तर्केणाऽमा न खलु विदितस्तेऽनवस्थानहेतुः॥ ऐसा लगता है जैसे कोई महाकवि संसार को मनोविज्ञान की शिक्षा दे रहा है। यह तथ्य भी है कि सत्य, काव्य में सुन्दर का रूप धारण कर लेता है, जो अपने पूर्व रूप से अधिक रमणीय होता है। श्रद्धा आनन्द की माधवी स्फुरणी है, तो द्वैध-विलय का धाम भी है। वहाँ सम्पर्ण विषमताएँ मिलकर सरस हो जाती हैं, इसीलिए श्रद्धा का स्वाद सर्वश्रेष्ठ है । जिसने इसको नहीं चखा उसका जन्म ही वृथा है: सत्सम्पर्का दधति न पदं कर्कशा यत्र तर्काः, सर्ववैधं व्रजतिविलयं नाम विश्वासभूमौ । सर्वे स्वादाः प्रकृतिसुलभा दुर्लभाश्चानुभूताः, श्रद्धा-स्वादो न खलु रसितो हारितं तेन जन्म ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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