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________________ अश्रुवीणा । ९३ और करुणापूर्वक देखा। वह व्यथित हृदय आश्वासन के लिए किसी दूसरे को प्राप्त नहीं कर सकी। सद्यः सिद्धि के लिए स्फुरित तेज से युक्त होकर उस चन्दनबाला ने आँसुओं को सम्बोधित कर कहा। व्याख्या- भगवद्विरह जन्य मूर्छा का चित्रण है। प्रिय प्रभु आए परन्तु इच्छापूर्ति के बिना लौट गए - ऐसी अवस्था देखकर चन्दनबाला मूर्च्छित हो गयी पुनः संज्ञा प्राप्त की। जब विपत्ति की वेला आती है तो दरवाजे बन्द मिलते हैं। चन्दना की इस अवस्था में कोई सहाय्य नहीं मिला। अन्त में अपनी ही शक्ति पर जागरित होती है, कार्य सिद्धि के लिए पुनः उद्यत होती है।वही आदमी सफल होता है जो विपद्वेला में अडोल, स्थिर एवं जागरूक होकर अपनी आत्मशक्ति से लक्ष्य के लिए यत्न करता रहता है। कातर एवं उद्विग्न होने से असफलता ही हाथ लगती है। कालिदास का यक्ष अपनी प्रियतमा को आत्मावलम्ब देने के लिए संदेश भेजता है। वह मेघ से कहता है कि मेरी प्रियतमा से कहना नन्वात्मानं बहुविगणयन्नात्मनैवावलम्बे, तत्कल्याणि! त्वमपि नितरां मा गमः कातरत्वम्। मेघदूत 2.4 इह क्षणम् मूर्छा प्राप्य इस दशा में क्षणभर मूर्छा को प्राप्त कर । इह = इस दशा में, यहाँ पर। क्षणम्=क्षणभर । __ मूर्छा=बेहोशी, संज्ञाहीनता, मोह। मूर्छा तु कश्मलं मोहोऽपि-अमर 2.8.109 । मूर्छा मोहादौ। मूर्छा मोहसमुच्छ्राययोः धातु से अ प्रत्यय करने पर तथा उपधा को दीर्घ करने पर मूर्छा बनता है। भारतीय आचार्यो ने, काव्यशास्त्रियों ने इसे मोह कहा है। भरतमुनि के अनुसार देवोपघात, भय, आवेग, पूर्ववैरस्मरण आदि विभावों से मूर्छा की उत्पत्ति होती है। (ना. शास्त्र 7.46) धनंजय ने दुःख, भीति, आवेश, अनुचिन्तन आदि से मूर्छा की उत्पत्ति को स्वीकार है। (दशरूपक 4.26)। पुनः लब्धचित्तोदया पुन: चैतन्य को प्राप्तकर, संज्ञा को प्राप्तकर दशसु दिक्षु भ्रान्ता-दशों दिशाओं में भ्रान्त। . भ्रान्ता-घबराई हई। चन्दनबाला का विशेषण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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