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________________ अश्रुवीणा / ८७ अर्थान्तरन्यास, स्वाभावोक्ति, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है। प्रथम तीन सामान्य का समर्थन चौथी पंक्ति के द्वारा किया गया है। शश्वन्-अव्यय है। निम्नलिखित अर्थों में इसका प्रयोग होता है - लगातार, अनादि काल से, सदा के लिए, सतत्, बार-बार, सदैव। इष्टे = सुख में। इष्ट शब्द का सप्तमी एकवचन इष । इच्छायाम् (तुदादि) धातु से क्त प्रत्यय हुआ है। कामं प्रकामं पर्याप्तं निकामेष्टं यथेप्सितम् अमर 2.9.57 इष्टमाशंसितेऽपि स्यात्पूजिते प्रेयसि त्रिषु-विश्वकोश 33.2 मेघदूत में इष्ट शब्द का सूक्तिगत प्रयोग है - इष्टे वस्तुन्युपचितरसाः प्रेमराशीभवन्ति 2.52 सम्मदानाम्-सम्मद शब्द का षष्ठी बहुवचन, सम्मद-अतिहर्ष, खुशी, प्रसन्नता। शिशुपाल बध महाकाव्य (15.17) में हर्ष अर्थ में प्रयुक्त है रणसंमदोदय. । रणेन रणारम्भेण यः संमदो हर्षः-टीकाकार । सम् उपसर्ग पूर्वक मदी हर्षे धातु से अप् प्रत्यय के योग से निष्पन्न । (१८) भिक्षां लब्धं प्रसृतकरयोः सम्प्रतीक्षापटुभ्यां, तच्चक्षुभ्यां हसितमियताऽ पूर्वहर्षोदयेन। येनाऽश्रूणामवलिरभवत् के वलं नैव मृष्टा, तेषां किन्तु प्रसर निपुणा चाप्युपादानलेखा॥ अन्वय- भिक्षा लब्धं प्रसृतकरयो: अपूर्वहर्षोदयेन तत् सम्प्रतीक्षापटुभ्याम् चक्षुभ्याम् हसितमियता। येन नैव अश्रूणामवलिः मृष्टा अभवत् किंतु तेषां प्रसरविपुणा उपादानलेखा अपि (मृष्टा अभवत्)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003074
Book TitleAshruvina
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size7 MB
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