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________________ १०६ : एसो पंच णमोक्कारो अकस्मात् कोई अनुभव जागा और उसकी तार्किक दृष्टि समाप्त हो गई। वह बदल गया। चेतना के चार स्तर हैं : १. इन्द्रिय-चेतना का स्तर । २. मानस-चेतना का स्तर। ३. बौद्धिक-चेतना का स्तर । ४. अनुभव-चेतना का स्तर । इन्द्रिय-चेतना के स्तर से ऊपर है मानस-चेतना का स्तर और उससे ऊपर है बौद्धिक-चेतना का स्तर और उससे भी ऊपर है अनुभव-चेतना का स्तर। यह प्रधान है। . इन्द्रिय-चेतना सामाजिक संपर्कों से विकसित होती है। मानस की चेतना सामाजिक संपर्कों और शिक्षा के वातावरण में संपन्न होती है। बौद्धिक चेतना सामाजिक सम्पर्कों और विशेष अध्ययन —चिन्तन-मनन के द्वारा विकसित होती है। किन्तु अनुभव की चेतना एक मात्र दिशा बदलने से ही विकसित होती है। जब तक मन की दिशा को मोड़कर बाहर से भीतर की ओर नहीं किया जाता, तब तक अनुभव की चेतना विकसित नहीं होती, फिर चाहे व्यक्ति पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़, उच्च स्तर पर जीने वाला हो या सामान्य स्तर पर। ऐसे व्यक्ति को अनुभव नहीं हो सकता। जब तक अनुभव नहीं होता, तब तक व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि यह मेरा अनुभव है। मैंने इसे साक्षात् किया है। उसका अपना कुछ भी नहीं होता। वह केवल उधार ली हुई बातों को दोहराता जाता है, उधार देता जाता है और वह उधार वाली बात आगे चलते-चलते इतनी दूर चली जाती है कि मूल का कहीं पता नहीं लगता। हम सब इस स्थिति में जी रहे हैं। एक व्यक्ति किसी से शास्त्र उधार लेता है और दूसरों को बांट देता है। यह क्रम चलता रहता है। यह क्रम इतना दूर चला जाता है कि यह सोचने का मौका ही नहीं मिलता कि मूल क्या है ? आज के युग की सबसे बड़ी मांग या जरूरत यह है कि मूल पूंजी पर हमारा ध्यान केन्द्रित हो, अनुभव पर हमारा ध्यान केन्द्रित हो। हम महावीर को इसलिए तीर्थंकर मानते हैं कि उन्होंने अनुभव किया, साक्षात्कार किया और फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003073
Book TitleEso Panch Namukkaoro
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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