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________________ 85 कर्म-फल भोगने की कला बनाने की अपेक्षा होती तो चेजारा रत्न का उपयोग किया जाता। वह देखते-देखते बड़े-बड़े मकान तैयार कर देता, हजारों सैनिक उन मकानों में रह जाते। ऐसे चौदह रत्न चक्रवर्ती भरत के पास थे। वैभव और विलास की समग्र सुविधाओं के अधिकारी होते हुए भी चक्रवर्ती भरत मोक्ष में गए। मोक्ष में कौन जाएगा? एक व्यक्ति ने भगवान् ऋषभ से पूछा-भंते! इस परिषद् में मोक्ष में जाने वाला कौन है? भगवान् ने सीधा उत्तर दिया-चक्रवर्ती भरत। वह व्यक्ति इस उत्तर से क्षब्ध हो उठा। उसने कहा-भगवान के घर में भी पक्षपात चलता है। इतने बड़े त्यागी-तपस्वी लोग बैठे हैं, फिर भी भरत को ही मोक्ष का अधिकारी बताया है। उसने परिषद् के मध्य भगवान् पर आक्षेप कर डाला। उस आदमी को भरत के निर्देश पर अधिकारियों ने पकड़ लिया। दूसरे दिन उसे राज्यसभा में उपस्थित किया गया। भरत ने पूछा-तुमने भगवान् की अवज्ञा की? भरत के इस प्रश्न से वह भयभीत बन गया। उसने कोई जवाब नहीं दिया। जहां दण्ड-शक्ति होती है, वहां आदमी मौन हो जाता है। चक्रवर्ती ने दण्ड सुनाया-इसे फांसी दे दी जाए। वह व्यक्ति घबरा गया। कठिन शर्त चक्रवर्ती ने बात को मोड़ देते हुए कहा-इस दण्ड से बचने का एक उपाय है। अगर एक तेल से भरा कटोरा लेकर अयोध्या के सारे बाजारों में घूमो, उसमें से एक बूंद भी नीचे न गिरे और पूरे नगर में घूम कर वापस यहां तक आ जाओ तो मुक्तिदान-क्षमादान मिल सकता है। बचने के लिए इस कठिन विकल्प को स्वीकार करना उसकी विवशता थी। उसने तेल से भरा कटोरा ले लिया और शहर की परिक्रमा शुरू कर दी। साथ में नंगी तलवारों से लैस सिपाही चल रहे थे। चक्रवर्ती भरत का आदेश था-जहां भी एक बूंद गिरे, इसका सिर काट दिया जाए। एक ओर वह मौत के साये में चल रहा है दसरी ओर चकवर्ती के For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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