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________________ जागरण और नींद का संघर्ष जिसने आधा घण्टा शुद्ध चेतना में रहने का अभ्यास किया है, वह कभी बड़ा अन्याय नहीं कर सकता। उससे सामान्य गलतियां हो सकती हैं किन्तु वह गंभीर अपराध नहीं कर सकता, किसी का गला नहीं काट सकता, किसी का शोषण नहीं कर सकता। शद्ध चेतना का अनुभव होने पर अन्याय, अपराध और शोषण जैसी स्थितियां समाप्त हो जाती हैं। ___ अध्यात्म का पहला सूत्र है- शुद्ध चेतना का अनुभव। जिस व्यक्ति ने शुद्ध चेतना को जानने और जीने का अभ्यास नहीं किया है, उसे न धार्मिक कहा जा सकता है न आध्यात्मिक कहा जा सकता है। अध्यात्म का अर्थ है- राग-द्वेष मक्त चेतना में जीना-शद्ध चेतना में जीना। यही ध्यान है, अहिंसा, समता और धर्म है। भगवान् महावीर ने अध्यात्म की इस अवधारणा को प्रखरता से प्रस्तुत किया। आचार्य कुन्दकुन्द ने भी इसी बात पर बल दिया- हम शुद्ध आत्मा की अनुभूति करें, ज्ञान में जिएं, ज्ञान का अनुभव करें, ज्ञान के स्वभाव को न भूलें। अशुद्ध है चेतना चेतना का निर्मल जल विकार के मल से गंदा बन जाता है। समाचार-पत्र में पढ़ा- दिल्ली का पानी दूषित हो गया है। दूषित होने का कारण बतलाया गया- पानी का नल और मल का नल - दोनों परस्पर सटे हुए चलते हैं। जब कभी उन नलों में खराबी आती है, कोई नल ट जाता है, तब मल के नल का मैल पानी के नल में मिल जाता है और उससे दूषित बना पानी लोगों के घरों में पहुंच जाता है। ऐसा लगता है- हमारी चेतना का प्रवाह शुद्ध नहीं रहा। इसमें अशद्धता की धारा संक्रांत हो गई है। इसमें राग और द्वेष, प्रियता और अप्रियता की गंदी नालियां मिल गई हैं। ये दोनों चेतना के शद्ध प्रवाह को अशद्ध बनाए हुए हैं इसीलिए वह कभी क्रोध से आक्रांत हो जाती है, कभी मान, माया और लोभ से आक्रांत हो जाती है। राग और द्वेष के चक्रव्यूह में फंसी हई चेतना अशद्ध चेतना है। संभवतः आदमी इन समस्याओं को चाहता है इसीलिए वह अशद्ध चेतना में जीना पसन्द करता है। काम, क्रोध और भय मुक्त चेतना उसे पसन्द नहीं है। अनेक लोग इस बात पर विश्वास करते हैं- वह क्या सामाजिक प्राणी है, जिसमें क्रोध भी न हो? वह क्या करेगा, घर को भी नहीं चला पाएगा। एक व्यक्ति ने मझे कहाप्रशासन चलाना है तो क्रोध करना जरूरी है। मैंने कहा- तेज बोलना तो जरूरी हो सकता है पर क्रोध करना जरूरी क्यों है? कहीं-कहीं एक आवेश दिखाना आवश्यक हो सकता है किन्तु क्रोध करना नहीं। पर ऐसी धारणा बनी हई है कि क्रोध किए बिना घर का काम भी नहीं चल सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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