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________________ 34 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा निर्विकल्प चेतना धर्म या अध्यात्म है निर्विकल्प चेतना। उसमें कोई विचार, चिन्तन या विकल्प नहीं होता। केवल आत्मा का अनुभव है निर्विकल्प चेतना। आचार्य कन्दकन्द ने आत्म-दर्शन पर बहुत अधिक बल दिया। उन्होंने कहा- केवल आत्मा को देखो। आत्मा ही समय है, आत्मा ही शुद्ध है, आत्मा ही केवली है, आत्मा ही मुनि है, आत्मा ही ज्ञानी है। आत्मा में स्थित व्यक्ति ही निर्वाण को प्राप्त करते हैं। परमट्ठो खलु समओ, सुद्धो जो केवली मुणी णाणी। तम्हि द्विदा सहावे, मुणिणो पावंति णिव्वाणं।। समस्या-मुक्ति का मार्ग प्रश्न होता है- आत्मा पर इतना बल क्यों दिया गया? सारे संसार की समस्याओं का अध्ययन किया गया तो पता चला- आत्मा के सिवाय इन समस्याओं का इस दुनिया में कोई समाधान नहीं है। आत्मा को जानकर ही व्यक्ति इन समस्याओं का समाधान पा सकता है। जो व्यक्ति आत्मा को जानने की दिशा में कदम नहीं बढ़ाता, वह समस्याओं के चक्र से मुक्ति नहीं पा सकता। वह एक समस्या को मिटाता है और अनेक समस्याओं को पैदा कर लेता है। आत्मा का दर्शन या आत्मा का साक्षात्कार ऐसा मार्ग है, जिससे अनेक समस्याएं एक साथ सुलझ जाती हैं, समाप्त हो जाती हैं। 'आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो'- इस बात पर अकारण ही बल नहीं दिया गया, चिन्तनपर्वक और प्रज्ञापर्वक इस बात पर बल दिया गया है। कहा गया- यदि तुम ढेर सारी समस्याओं का समाधान चाहते हो, जीवन में दःख और समस्याओं से मक्ति चाहते हो तो उसका सीधा रास्ता है आत्म-दर्शन। जिसने अपनी आत्मा को जानने का प्रयत्न किया है, उसने समस्याओं का पार पाया है। समस्या के तीन हेतु समस्याओं के मुख्यतः तीन हेत् हैं- मिथ्यात्व, अज्ञान और कषाय। आचार्य कुन्दकुन्द ने इस सन्दर्भ में बहुत सुन्दर मार्गदर्शन किया है। उन्होंने लिखा- सम्यक्त्व का प्रतिबंधक है मिथ्यात्व, ज्ञान का प्रतिबंधक है अज्ञान और चरित्र का प्रतिबंधक है कषाय। सम्मत्तपडिणिबद्ध मिच्छत्तं जिणवरेहिं परिकहिये। तस्सोदयेण जीवो मिच्छादिट्ठि त्ति णादव्वो।। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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