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________________ जान खोल देता है जीवन में नए आयाम संदर्भ : अकाल मृत्यु दुनिया में जितनी समस्याएं हैं, वे सब अज्ञानजनित हैं। अज्ञान बहुत सारी समस्याओं को जन्म देता है। इस सचाई को हम अकाल मत्य के संदर्भ में देखें। यह निश्चित है, जो जन्म लेता है, वह मरता है। प्रश्न है-जो मरते हैं, वे स्वाभाविक मौत से मरते हैं या अकाल मृत्यु से। उत्तर होगा- स्वाभाविक मौत से मरने वाले व्यक्ति कम हैं, अकाल मौत से मरने वाले ज्यादा हैं। अज्ञानी आदमी अकाल मौत से मरता है। भगवान् महावीर ने अकाल मृत्यु के सात कारण बतलाए हैं। उनमें पहला कारण है-तीव्र अध्यवसाय। अध्यवसाय की तीव्रता अकाल मृत्यु का एक कारण है, जिस व्यक्ति में राग-द्वेष की तीव्रता है, वह अपनी मौत नहीं मरता, स्वाभाविक मौत नहीं मरता, वह अकाल मृत्य से मरता है। लोभ : परिणाम ___ आयुर्वेद में शरीर के सारे अवयवों की आयु बतलाई गई है। हाथ की आयु तीन सौ वर्ष, गुर्दे की आयु तीन सौ वर्ष और हड्डियों की आयु उससे भी ज्यादा है। शरीर के अवयवों की आयु तीन सौ-चार सौ वर्ष और व्यक्ति सौ वर्ष भी जीवित न रहे, सत्तर वर्ष भी पूरे न कर पाए, इसका अर्थ है-आदमी अकाल मृत्य को बलाता है। इसका कारण है-अध्यवसाय की तीव्रता, राग-द्वेष की तीव्रता, भय और आकांक्षा की तीव्रता। आज के युग में लोभ भी ज्यादा बढ़ा है। लोभ पहले नहीं था, यह नहीं कहा जा सकता किन्तु ऐसा लगता है-आज वह ज्यादा है। लोभ बढ़ेगा तो भय बढ़ेगा। भय बढ़ेगा तो अनेक समस्याएं पैदा होंगी। आयुर्वेद के अनुसार लोभ का परिणाम है अग्निमंदता। जिसमें लोभ ज्यादा होता है, उसकी अग्नि मंद हो जाती है, भूख की रुचि कम हो जाती है। __ आचार्यश्री एक बड़े उद्योगपति के घर पर प्रवास कर रहे थे। पांच-छह दिन बीत गए। एक दिन आचार्यश्री ने कहा- आपका जीवन क्या है? आप शांति से भोजन भी नहीं कर पाते। भोजन करते समय भी दस-दस बार फोन करते हैं। दिन-रात फोन की घण्टियां बजती रहती हैं। न शांति से सो पाते हैं, न शांति से खा पाते हैं। उद्योगपति बोले-महाराज ! आपका कथन यथार्थ है। मैं कुछ भी नहीं खा पाता। मैं एक छोटा-सा फुलका-फांफरा खाता हूं, वह भी पूरा नहीं खा सकता। मझे भख ही नहीं लगती। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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