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________________ 148 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा की ओर ध्यान नहीं देता। हिंसा एक कार्य है। उसके पीछे कारण भी है। हिंसा से दूर वही व्यक्ति रह सकता है, जो हिंसा के कारण के प्रति जागरूक होता है। प्रश्न है- हिंसा का कारण क्या है? हम स्थूल दृष्टि से, लौकिक भावना से विचार करें तो हिंसा के बहुत सारे कारण प्रस्तुत हो जाएंगे। प्रश्नव्याकरण और आचारांग सूत्र में उनका वर्गीकरण भी मिलता है। आदमी रोजी-रोटी के लिए हिंसा करता है। पैसा कमाने के साधनों के लिए हिंसा करता है। शरीर को सुन्दर बनाने के लिए हिंसा करता है। ऐसे अनेक कारण हैं। कस्तूरी को पाने के लिए कस्तूरी मृगों को मार देता है। बढ़िया चमड़े के लिए बाघ को मार देता है, अनेक पशुओं का वध कर देता है। दांत के लिए हाथियों को मार देता है पर ये सब हिंसा के मूल कारण नहीं हैं। मूल कारण है राग हिंसा का मल कारण है राग। आदमी राग के कारण हिंसा करता है। द्वेष हिंसा का मूल कारण नहीं है। एक चोर हिंसा करता है, एक आतंककारी हिंसा करता है। एक डकैत हिंसा करता है। ये सब द्वेष के कारण हिंसा नहीं करते। एक सैनिक हिंसा करता है, वह द्वेष के कारण नहीं करता क्योंकि उसकी अपनी कोई दुश्मनी नहीं है। इसे समझने के लिए हमें गहराई में जाना होगा। यह संस्कार बन गया है - मन में द्वेष और घृणा होती है तो आदमी हिंसा करता है। लेकिन ये मूल कारण नहीं हैं। एक आदमी मिलावट करता है। उससे हजारों आदमी पक्षाघात के शिकार हो जाते हैं। क्या उनसे उसका द्वेष था? कोई द्वेष नहीं था। मिलावट का कारण है - राग। मैं धनी बनं, बड़ा आदमी बनं, धन का ढेर लग जाए, मैं चाहे जैसा कर सकू, भीतर में यह जो राग है, वही मिलावट करा रहा है, मनुष्य को अनैतिक बना रहा है, हिंसा करा रहा राग की उपज है द्वेष मूल में द्वेष नहीं है। द्वेष राग की ही उपज है। यदि अपने शरीर के प्रति, परिवार के प्रति राग का भाव न हो तो द्वेष पैदा ही नहीं होगा। एक को बचाना है तो दूसरे के साथ द्वेष करना होगा। अपने राष्ट्र से प्रेम है तो दूसरे राष्ट्र से द्वेष करना होगा। व्यक्तिगत कोई द्वेष नहीं है। यदि हम इस मूल कारण को समझें तो बात बहुत साफ हो जाती है। आज सारे संसार में आतंकवाद का चक्र चल रहा है। कारण क्या है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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