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________________ 141 वृत्ति परिष्कार का दृष्टिकोण नहीं है। हम इस सचाई को समझें-मैं जो कर्म करता हूं, उसका उत्तरदायी मैं ही हूं। मेरा किया हुआ कर्म मुझे ही भुगतना होगा। यह सचाई समझ में आती है तो हमारा सारा दृष्टिकोण बदल जाता है। जीवन के प्रति अध्यात्म का यह दृष्टिकोण बन जाए तो निष्कर्ष ही बदल जाएगा, आदमी दूसरे पर कोई आरोपण नहीं करेगा। अध्यात्म की भाषा जीवन के संदर्भ में यह बात कठिनता से समझ में आती है। मृत्यु के संदर्भ में भी व्यक्ति यही सोचता है-उसने मुझे मार दिया। यह लौकिक दृष्टिकोण है। जब हम अध्यात्म की भाषा में सोचेंगे, हमारा दृष्टिकोण बदल जायेगा। अध्यात्म की भाषा है-कोई भी आदमी मरता है तो वह अपनी आयु के क्षय होने से मरता है। कौन किसको मारने वाला है? क्या किसी के मारने से कोई मरता है? जिसकी आय क्षीण नहीं है, वह किसी के मारने से नहीं मरेगा। जव भयंकर भकंप आते हैं, लोग दब जाते हैं हजारों लोग मरते हैं लेकिन कुछ लोग, जो नीचे दबे हुए होते हैं पांच-सात दिन बाद भी जीवित बच जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? हम तर्क की भाषा में कहते हैं, उनकी उम्र लम्बी थी इसलिए वे बच गए। यह सारा खेल है आयुष्य का। जब तक आयुष्य क्षीण नहीं होता तब तक कोई किसी को मार नहीं सकता। यह चिन्तन-'मैं किसी को मारता ह या मझे कोई मारता है' मढ़तापूर्ण चिन्तन है। सच यह है-मैं किसी को मार नहीं सकता और दूसरा मझे मार नहीं सकता, निमित्त बन सकता है। समयसार में कहा गया है-जीव आय के क्षय होने पर मरण को प्राप्त होता है, ऐसा जिनेन्द्र देव ने कहा है। दूसरा तुम्हारे आयुष्य का हरण कैसे कर सकता है और तुम दूसरों के आयुष्य का हरण कैसे कर सकते हो? आउक्खयेण मरणं जीवाणं जिणवरेहिं पण्णत्तं । आउं ण हरेसि तुम कहं ते मरणं कदं तेसिं ।। आउक्खयेण मरणं जीवाणं जिणवरेहिं पण्णत्तं । आउं ण हरति तुहं कहं ते मरणं कदं तेहिं ।। उपादान क्या है ? जीवन और मरण के प्रति यह आध्यात्मिक दृष्टिकोण है। जब तक दृष्टिकोण राग-द्वेष से प्रभावित होता है, अहंकार और लोभ से प्रभावित होता है तब तक हमारे चिन्तन और निष्कर्ष एक प्रकार के होते हैं। जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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