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________________ 116 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा भोजन का। सबकी भोजन की रुचि भी एक प्रकार की नहीं होती। कोई मठाई खाना पसन्द करता है, कोई नमकीन खाना पसन्द करता है और कसी की रुचि होती है खट्टे पदार्थ खाने की। यह रुचि-भेद बड़ा विचित्र होता है। एक व्यक्ति की रुचि है खब गहने-आभूषण पहनने की, प्रदर्शन करने की। वह अपने आपको दिखाना चाहता है। बहुत बार यह प्रदर्शन की रुचि विकट समस्या पैदा कर देती है। आज सामाजिक जीवन में जो कछ रूढ़िया चल रही हैं, उनकी पृष्ठभूमि में प्रदर्शन की रुचि है। आदमी के पास सब कछ नहीं है फिर भी वह अपने आपको बहत कछ दिखाना चाहता है। तर्कशास्त्र का एक न्याय है- याचितमंडनकम्। एक व्यक्ति के पास गहना नहीं है। वह दसरे से मांगकर पहनेगा और यह दिखाने की कोशिश करेगा- मेरे पास इतना रहना है। समाधान-सूत्र यह रुचि-भेद की स्थिति है। जो इस स्थिति में सामंजस्य करना नहीं जानता, वह सामहिक जीवन में कलह, लड़ाई और झगड़े से बच नहीं पाता। बहुत बड़ी कला है रुचि का परिष्कार करना। आज टी.वी. के प्रति अत्यन्त रुचि बढ़ती जा रही है। आजकल के बच्चों का टी.वी. के प्रति जितना आकर्षण है उतना किसी दूसरे के प्रति नहीं है। अगर इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया तो एक ऐसी पीढ़ी का निर्माण हो जाएगा, जिसमें दायित्व की भावना नहीं होगी, कर्तव्य-चेतना नहीं होगी, समयोचित बोध नहीं रह पाएगा। यह भी एक तथ्य है- बच्चों को जबरदस्ती रोकना भी मुश्किल है। इसका समाधान यही है कि हम बच्चों की रुचि का परिष्कार करें। जरूरी है परिष्कार __ आज ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका आदि समृद्ध देशों में टी.वी. के विरुद्ध आन्दोलन चल रहा है। कहा जा रहा है- ब्रिटेन में इन दो वर्षों के दौरान इतने ऐनक बिके, जितने पिछले कई वर्षों में नहीं बिके। बच्चों की आंखों के कमजोर होने का प्रतिशत बढ़ा और एक आन्दोलन शुरू हो गया। कहा गया- इसे बन्द करो। इससे आंखें खराब होती हैं। इसके साथ ही इससे जो किरणें निकलती हैं, वे आस-पास फैल जाती हैं। उनका स्वास्थ्य पर भी बरा प्रभाव पड़ता है। रुचि का नियन्त्रण और परिष्कार होना जरूरी है। जहां सामाजिक एवं पारिवारिक सहवास का प्रश्न है वहां रुचि को लड़कर नहीं बदला जा सकता। उसके लिए ऐसा उपाय खोजना चाहिए, जिससे रुचि का परिष्कार भी हो जाए और लड़ाई का प्रश्न भी न आए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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