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________________ 12 समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा निष्कर्ष बदल जाएंगे। समस्या यह है - क्रोध- चेतना, लोभ- चेतना आदि-आदि चेतनाएं जागती रहती हैं, आत्मा का चिन्तन, निर्णय, - सब कुछ गलत और विकृत होते चले जाते हैं। हम इस बात को एकांगी दृष्टिकोण से स्वीकार न करें - आत्मा शुद्ध ही है या आत्मा अशुद्ध ही है। एकांगी - आग्रह को छोड़कर ही सामंजस्य बिठाया जा सकता है । यह अनाग्रह की चेतना है, सामंजस्य की चेतना है- - स्वरूप की दृष्टि से आत्मा शुद्ध है किन्तु उसे वर्तमान अवस्था की दृष्टि से शुद्ध नहीं माना जा सकता । जीवन व्यवहार : सामंजस्य हम अपने जीवन व्यवहार में सामंजस्य की बात को महत्त्व नहीं देंगे तो शांतिपूर्ण सहवास की बात संभव नहीं बन पाएगी। यदि साथ में रहना है, सह- चिन्तन, सह-चित्त, सह-वास या सह अस्तित्व चाहते हैं तो सामंजस्य का सूत्र अपनाना ही होगा । आग्रह को त्यागे बिना सामंजस्य संभव नहीं है । आग्रह - चेतना सामंजस्य में बहुत बड़ी बाधा है। हम अपने ज्ञान, चिन्तन और समझ की शक्ति को बढ़ाएं, दूसरे की बात को समझने का प्रयत्न करें और यह मानकर चलें - सत्य अनंत है, जितना मैंने जाना है, वह उतना ही नहीं है। हम उसकी व्यापकता को स्वीकार करें, उसकी सीमा बांधने का प्रयास न करें। आग्रह चेतना निर्मल बने सत्य सीमातीत है, उसे सीमित करने का प्रयत्न आग्रह को जन्म देगा। इस सिद्धांत को समझकर पकड़ की रस्सी को थोड़ा ढीला करें। ऐसा तो नहीं माना जा सकता कि आग्रह की गांठ एक साथ खुल जाएगी किन्तु इससे आग्रह- चेतना कुछ निर्बल बन जाएगी, आग्रह की गांठ धीरे-धीरे खुलने लगेगी। जहां आग्रह नहीं है, वहां समस्या नहीं है। जहां आग्रह से मुक्ति है, वहां समस्या का समाधान है। हम आग्रह को छोड़ें, जीवन में अनाग्रह वृत्ति का विकास करें तो सामंजस्य का सूत्र उपलब्ध हो जाए । आचार्य कुन्दकुन्द ने अध्यात्म के क्षेत्र में सामंजस्य का जो दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, वह जीवन-व्यवहार के संदर्भ में भी बहुत मूल्यवान् है । O Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003072
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages178
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size6 MB
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