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________________ १. मकड़ी अपने ही जाल में उलझ रही है असीम और ससीम – इन दो शब्दों से हम बहुत परिचित हैं । आकाश असीम हैं । पृथ्वी की सीमा है । इच्छा असीम है, पदार्थ जगत की सीमा है । यदि हमें सीमा का बोध होता तो हम इच्छा को सीमा में बांधने का प्रयत्न करते । यदि इच्छा की सीमा हो जाती तो पर्यावरण विज्ञान के क्षेत्र में एक क्रांति घटित होती । इकोलोजी का एक सिद्धांत है— लिमिटेशन । पदार्थ सीमित हैं इसलिए उनका असीम भोग न करें। जल असीम नहीं है; उसका व्यय उसे असीम मानकर किया जा रहा है । पीने का जल आज भी कम है । केवल राजस्थान ही नहीं, अनेक प्रांत जल संकट की समस्या से जूझ रहे हैं । वैज्ञानिक कहते हैं— जल का इसी प्रकार अपव्यय होता रहा तो जल संकट एक दिन गम्भीर रूप ले सकता है । बड़े-बड़े शहरों में गंदी नालियों के जल को साफ कर पीने की नौबत आ सकती है । महात्मा गांधी इस समस्या के प्रति बहत जागरूक थे । वे थोड़े से जल से स्नान कर लेते, अपने कपड़े धो लेते । रूपचन्दजी सेठिया बावन तोला जल से स्नान कर लेते । एक बौद्धिक व्यक्ति को ये बातें पुरानेपन या पिछड़ेपन जैसी लगती है । पानी को घी की तरह बरता जाए— इस धारणा में अतिरंजना की अनभूति होती है । किन्तु किसी भी प्रवृत्ति और अवधारणा का मूल्य समस्या के सन्दर्भ में आंका जाता है । सीमा का मूल्य पानी की समस्या जैसे-जैसे गहराती जा रही है, पर्यावरण विज्ञानी सृष्टि संतुलन की बात प्रस्तुत करते जाते हैं, जल विज्ञानी जल समस्या की उग्रता को कहते जाते हैं, तब समझ में आता है, सीमा का कितना मूल्य है । एक व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003069
Book TitleAmantran Arogya ko
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1999
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size9 MB
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